सत्यम कुमार/भागलपुर:- भागलपुर सिल्क नगरी के नाम से प्रसिद्ध है. सिल्क की ख्याति भारत देश से लेकर विदेशों में फैली हुई है. लेकिन अब धीरे-धीरे सिल्क काफी महंगा होने लगा है, जिसका असर सिल्क व्यवसायी पर पड़ने लगा है. इसे लेकर जब बुनकर आलोक कुमार से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पर कोकून सेंटर नहीं है. सिल्क के लिए कोकून उतना ही महत्व रखता है, जितना जिंदा रहने के लिए सांस की जरूरत पड़ती है, क्योंकि कोकून से ही सिल्क का धागा तैयार होता है. पहले बड़े पैमाने पर कोकून का उत्पादन भागलपुर में होता था. लेकिन अब धीरे-धीरे ये उत्पादन खत्म होने की कगार पर है. यहां पर शहतूत व अर्जुन का बगीचा हुआ करता था, जिस पर कोकून पालन किया जाता था और प्रत्येक घरों में रेशम का उत्पादन होता था.
रेशमी शहर की घट रही रौनक
बुनकर ने बताया कि कुछ सालों पहले यहां पर शहतूत व अर्जुन का बगीचा हुआ करता था, जिस पर बड़े पैमाने पर कोकून उत्पादन किया जाता था. उसके बाद इसके कोकून से रेशम का धागा तैयार किया जाता था. इन्हीं दोनों पेड़ों पर रेशम का कीड़ा पाला जाता है, जिससे कोकून तैयार होता है. जब यहां पर कोकून पालन कम होने लगा, तब धीरे-धीरे रेशमी शहर की रौनक घटती चली गई.
ऐसे आएगी रेशम की कीमत में कमी
सिल्क के दाम महंगे होने की मुख्य वजह इसका बाहर के देश में ज्यादा से ज्यादा निर्यात होना है. अभी पड़ोस के जिला बांका में कोकून का उत्पादन कम पैमाने पर होता है. लेकिन यहां से तैयार धागा बाहर चला जाता है. इससे रेशमी शहर को धागे की मार झेलनी पड़ती है. इस वजह से रेशम के कपड़ों का दाम आसमान छूता चला जा रहा है. वहीं विभाग के द्वारा कोकून केंद्र बनाने की बात चल रही है. अगर जल्द ही इस रेशमी शहर को सेंटर मिलता है और धागे का उत्पादन भागलपुर में होना शुरू होता है, तो संभवत यहां के रेशमी कपड़ों के दामों में जरूर कमी आएगी. एक बार फिर से भागलपुर का रेशम पूरे देश में अपना परचम लहराने लगेगा. धागे की किल्लत की वजह से दामों में काफी इजाफा हो जाता है. इसका मार बुनकरों को झेलना पड़ता है. इसके साथ ही मजदूरी बढ़ाने के कारण भी सिल्क के दामों में इजाफा हुआ है.
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FIRST PUBLISHED : January 17, 2024, 11:01 IST