संजय यादव/बाराबंकी : जिले के ज्यादातर किसान अब पारंपरिक खेती से हटकर आधुनिक खेती की तरफ रुख कर रहे हैं. यही वजह है कि किसान अब सब्जियों की खेती बड़े पैमाने पर करने लगे हैं. वहीं जिले के प्रगतिशील किसान सतेंद्र कुमार ने पीली जुकिनी की खेती कर अच्छा लाभ कमा रहे हैं क्योंकि पीली जुकिनी की खेती में लागत के हिसाब से मुनाफा ज्यादा है. आज इनकी खेती देख इनके गांव के कई किसान पीली जुकिनी की खेती करने लगे हैं.
गौरतलब है कि जुकिनी में फाइबर और न्यूट्रिशंस भरपूर मात्रा में पाया जाता है. जुकिनी एक तरह की तोरी ही होती है लेकिन इसका रंग, आकार और बाहरी छिलका कद्दू जैसा होता है. साथ ही जुकिनी आमतौर पर हरे और पीले रंग की होती है. जुकिनी को तोरी, तुरई और नेनुआ जैसे नामों से भी जाना जाता है . जिले के बस बसौली गांव केरहने वाले किसान सत्येंद्र कुमार ने दो बीघे में पीली जुकिनी की खेती की शुरुआत की है. इसकी खेती भी कद्दू की तरह होती है लेकिन इसकी डिमांड बड़े-बड़े होटलो व मॉल में होती है और अच्छे रेट में जाती है. यही वजह है किआपको पीली जुकिनी आम मार्केट में नहीं मिलेगी. इसकी खेती से आज किसान लाखों रुपए मुनाफा कमा रहे हैं.
कम लागत में होता है अच्छा मुनाफा
किसान सत्येंद्र कुमार ने बताया कि पारंपरिक खेती में लागत निकाल पाना भी मुश्किल होता था फिर हमें उद्यान विभाग से सब्जियों की खेती के बारे में जानकारी मिली. उसके बाद हमने पीली जुकिनी की खेती छोटे से टुकड़े से शुरुआत की जिसमें हमें अच्छा मुनाफा दिखा. आज हम दो बीघा में पीली जुकिनी की खेती कर रहे हैं. जिसमें लागत 20 हजार रुपये बीघा आ जाता है और मुनाफा करीब दो लाख रुपये तक आराम से हो जाता है. यानि इस सब्जी की खेती में मुनाफा 10 गुना है.
ठंड के मौसम में बढ़ जाती है डिमांड
सत्येंद्र कुमार ने बताया कि इसकी खेती करना बहुत ही आसान है जैसे कद्दू की खेती की जाती है. उसी तरह पीली जुकिनी भी तैयार की जाती है. बस इसकी देखरेख करना जरूरी होता है और यह मार्केट में 30 से ₹40 प्रति किलो आराम से बिक जाती है. यह आम मार्केट में नहीं मिलती क्योंकि ठंड के मौसम में पीली जुकिनी की डिमांड ज्यादा रहती है और इसकी खेती कम लागत में अच्छा लाभ देने वाली फसल है.
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FIRST PUBLISHED : January 2, 2024, 18:46 IST