आशुतोष तिवारी/रीवा: हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार होते हैं, जिन्हें षोडश संस्कार कहा जाता है. आयुर्वेद के अनुसार इन संस्कारों में सुवर्णप्राशन भी एक संस्कार है. पूर्व रीवा जिला आयुष अधिकारी डॉ. केपी त्रिपाठी ने बताया कि सुवर्णप्राशन आयुर्वेद के अनुसार एक ऐसी विधि है, जिसका इस्तेमाल हजारों सालों से बच्चों को पूरी तरह से स्वस्थ बनाने के लिए उपयोग में किया जाता है.
काश्यप संहिता में भी वर्णन
डॉ. केपी त्रिपाठी ने बताया कि कश्यप संहिता के अनुसार, सुवर्णप्राशन बच्चों में बुद्धि, पाचन शक्ति और ताकत को बढ़ाने में सहायक है. साथ ही जिन बच्चों में निमोनिया जैसे बीमारियों की शिकायत बार-बार मिलती है, उन्हें यदि 6 महीने तक हर रोज सुवर्णप्राशन दिया जाता है तो बच्चों के जीवन में कभी रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता कम नहीं होती. इसके सेवन से शरीर ऊर्जावान बनता है. इससे बच्चों की बुद्धि और स्मरण शक्ति बढ़ती है. आयुर्वेद के अनुसार, इसके सेवन से बल, वीर्य, आयु, स्मृति बुद्धि सभी में फायदे होते हैं.
तब न दें सुवर्णप्राशन
डॉ. केपी त्रिपाठी ने बताया कि बच्चों को सुवर्ण प्राशन तब नहीं देना चाहिए जब उन्हें सर्दी, खांसी, जुकाम, बुखार जैसी कोई समस्या हो या फिर बच्चा रक्त विकार से पीड़ित हो. सुवर्णप्राशन का सेवन शहद और घी के साथ भी किया जा सकता है. जन्म लेने के बाद 15 साल तक के बच्चों को सुवर्णप्राशन देना चाहिए.
इन तत्वों से मिलकर बना सुवर्णप्राशन
आगे बताया कि कई कंपनियां सुवर्णप्राशन बनाने का काम करने लगी हैं. दरअसल सुवर्णप्राशन स्वर्ण भस्म, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, मंडूकपर्णी, यष्टिमधु, वच और गुडुची जैसी औषधि को मिलाकर बनाया जाता है. स्वर्ण भस्म के तत्व शरीर को अंदर से मजबूती प्रदान करते हैं. साथ ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं. यह अवसाद, स्मृति, एकाग्रता, मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. कमजोर से कमजोर बच्चे की आयुर्वेद के द्वारा बताए गए इन औषधियों के सहारे इम्यूनिटी बढ़ाई जा सकती है.
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FIRST PUBLISHED : January 23, 2024, 19:02 IST