नई दिल्ली:
9 सितंबर की सुबह जब पूरा देश राजधानी दिल्ली में जी20 की बड़ी मीटिंग के आगाज की खबरों में डूबा हुआ था तभी दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश सूबे से पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी की खबर आ गई. तेलुगुदेशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू को स्टेट सीआईडी ने स्किल डेवलपनेंट घोटाले के आरोप में गिरफ्तार किया है. अगले साल की शुरुआत में देश में आम चुनाव और आंध्रप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में नायडू की गिरफ्तारी ने सबक चौंका दिया है. साथ ही इस गिरफ्तारी ने आंध्र प्रदेश की राजनीति में नायडू और रेड्डी परिवार के बीच की पॉलिटिकल द्वोष को भी चर्चा में ला दिया है. चंद्रबाबू नायडू के राजनीतिक करियर भी काफी दिलचस्प है. एक वक्त था उनकी मर्जी से केंद्र की अटर बिहारी वाजपेयी सरकार बड़े फैसले किया करती थी. चंद्रबाबू नायडू तेलुगू सिनेमा के सुपरस्टार और आध्र प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री एनटी रामाराव के दामाद हैं.
साल 1995 में उन्होंने अपने ससुर के खिलाफ बगावत करके उनकी बनाई पार्टी तेलुगुदेशम पर कब्जा कर लिया और मुख्यमंत्री रहते हुए भी एनटीआर बस हाथ मलते ही रह गए.आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक चमकदार सितारे की तरह उभरते हुए नायडू ने 1999 से विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी तो की. साथ ही वो केंद्र की एनडीए सरकार का एक मजबूत स्तंभ भी बने और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कार्यकाल के पूरा होने की बड़ी वजह भी बने.
वाजपेयी सरकार में नायडू का बढ़ा था सियासी कद
कहा जाता है कि नायडू की सलाह पर ही वाजपेयी सरकार ने साल 2004 के वक्त से पहले ही लोकसभा चुनाव कराने का फैसला किया था. जोकि आत्मघाती फैसला साबित हुआ था और केंद्र में एनडीए को और आंध्र प्रदेश में नायडू को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी. साल 2004 में आंध्र प्रदेश की सत्ता मे कांग्रेस की वापसी हुई, जिसकी कमान वाईएस रेड्डी के हाथों में जिन्हें वाईएसआर कहा जाता था. वाईएसआर और चंद्र बाबू नायडू साल 1978 में कांग्रेस के टिकट पर चुनकर एक साथ पहली बार विधानभा पहुंचे थे. दोनों ही टी अंजैया की सरकार में जुनियर मिनिस्टर भी बने थे. साल 1984 में जब एनटीआर ने तेलुगुदेशम पार्टी बनाई तो नायडू कांग्रेस छोड़कर अपने ससुर की पार्टी में शामिल हो गए और यहीं से उनके और रेड्डी परिवार के बीच आधंप्रदेश की सबसे बड़ी पॉलिटिकल द्वोष का आगाज हुआ.
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कभी नायडू तो कभी रेड्डी ने संभाली थी प्रदेश की कमान
साल 1999 में जब नायडू की पार्टी तेलुगुदेशम ने लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार बनाई तो वाईएसआर विपक्ष के नेता बने. उस वक्त नायडू काफी पावरपुल थे और केंद्र की वाजपेयी सरकार उनकी सहमति के बिना कोई फैसला लेने की हालत में नहीं थी, लेकिन ये 2004 में ये गेम बदल गया. वाईएसआर आंद्र प्रदेश की सीएम बन गए और केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार बन गई. साल 2009 में वाएसआर ने नायडू को फिर शिकस्त दी. आंध्र प्रदेश काग्रेस और केंद्र में फिर से यूपीूए की सरकरा बनी. उस वक्त ये माना जा रहा था कि नायडू का सियासी जादू अब खत्म होने लगा है, लेकिन साल 2009 में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में वाईएसआर की मौत ने इस सूबे की राजनीति को फिर बदल दिया. कांग्रेस ने पहले के रोसैया और फिर किरण रेड्डी की सीएम बनाया और वाईएस आर के बेटे जगन मोहन रेड्डे कांग्रेस से नाराज हो गए. ऐसा कहा जाता है कि जगममोहन रेड्डी की राजनीति को शुरू होने से पहले ही खत्म करने के लिए स्टेट कांग्रेस और नायडू ने हाथ मिला लिया. आरोप भ्रष्टाचार के थे और गिरफ्तरी करने वाली एजेंसी वहीं की सीआईडी थी, जिसने अब चंद्रबाबू नायडू को गिरफ्तार कर लिया है.
बहरहाल 2013-14 में आध्रप्रदेश का बंटवारा हुआ तेलंगाना एक अलग राज्य बना.
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नायडू की गिरफ्तारी से दक्षिण भारत में उबाल
साल 2014 में चंद्रबानू नायडू फिर से आंध्र प्रदेश के सीएम बने और केंद्र की एनडीएओ सरकार में भी शामिल हुए, लेकिन इस बार मोदी सरकार पूर्ण बहुमत में थी. लिहाजा नायडू का वो जलवा नहीं था जो वाजपेयी सरकार में हुआ करता था और साल 2018 में नायडू एनडीए से अलग भी हो गए. नायडू को सबसे बड़ा झटका 2019 में लगा, जब जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने नायडू की पार्टी को बुरी तरह से मात देकर सरकार पर कब्जा कर लिया और अब चुनाव से कुछ ही महीने पहले नायडू की गिरफ्तारी ने सूबे के समीकरणों को भी अस्त-व्यस्त कर दिया है. जगन मोहन रेड्डी कई मसलों पर केंद्र सरकार से साथ रहे, लेकिन कभी एनडीए का हिस्सा नहीं बने. वहीं, बीजेपी दक्षिण भारत के इस राज्य में नायडू के तौर पर एक संभावित पार्टनर को देख रही थी, लेकिन नायडू को गिरफ्तार करने के दांव ने इस सूबे की राजनीति में उबाल ला दिया है.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट