कभी मिलती थी 35 हजार सैलरी, आज हुए मोहताज, इडली बेच रही पत्नी

संजय सिन्हा

रांची. झारखंड के रांची में मदर इंडस्ट्री एचईसी की बदहाली उसके कर्मचारियों को खून के आंसू रुला रही है. 18 महीने से एचईसी में काम करने वाले ज्यादातर कर्मचारी दाने-दाने को मोहताज हो चुके हैं. मदर इंडस्ट्री में काम करने वाले 3 हजार से ज्यादा कर्मचारी आर्थिक बदहाली से गुजर रहे हैं, लेकिन एचईसी को बदहाली से बाहर लाने का कोई फॉर्मूला फिलहाल नजर नहीं आता. मदर इंडस्ट्री में पिछले 11 साल से काम करने वाले टेक्निशियन दीपक उपरियार का परिवार भी दाने-दाने को मोहताज है.

दीपक बताते हैं कि 18 महीने बिना सैलरी के किसी आग पर चलने से कम नहीं लग रहा. उन्होंने बताया कि शुरुआत के एक दो महीने तो जमा पूंजी से निकल गई. उसके बाद के 2-3 महीने कर्ज लेकर गुजार लिए, लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता गया, परिवार की मुसीबतें भी बढ़ती गई.

दीपक की हैं 2 बेटियां

आंखों में आंसू लिए दीपक ने बताया कि घर में पत्नी के अलावा दो बेटियां हैं. बड़ी बेटी कक्षा सात में पढ़ती है, जबकि छोटी चौथी क्लास में. बिना सैलरी के परिवार के हालात बिगड़ने लगे. यहां तक कि दो वक्त के निवाले पर भी आफत आने लगी. ऐसे में मजबूरी में पत्नी के गहनों को गिरवी रखना पड़ा, लेकिन हर दिन का खर्च और भोजन पर आफत आने लगी. तब ऐसे हालात में पत्नी ने हौसला दिया. पत्नी ने बताया कि वह ईडली बनाना जानती है. ऐसे में पत्नी ने घर के आगे ही इडली की दुकान खोल ली.

एचईसी में बतौर टेक्निशियन काम करने वाले दीपक बताते हैं कि इडली की दुकान से एक दिन में महज 100 से 150 रुपये ही कमाई हो पा रही है. वहीं दूसरी ओर उन्हें लगातार ऑफिस भी आना पड़ रहा है. वह बताते हैं कि उन्हें 35 हजार के करीब सैलरी मिलती थी, लेकिन अब वह इतिहास हो चुका है.

परिवार की हालत खराब

परिवार की उम्मीदों पर दीपक बताते हैं कि दोनों बेटियों को बाजार ले जाने में भी डर लगता है. सातवीं में पढ़ने वाली बड़ी बेटी थोड़ी समझदार है, लेकिन उसके लिए पांच रुपये की कलम और पेंसिल खरीदने के लिए भी सोचना पड़ता है. वहीं दूसरी ओर छोटी बेटी जब बाजार में कुछ खाने की डिमांड करती है, तो उसे समझाना पड़ता है. ऐसे में छोटी बेटी कहती है, ‘पापा यह बहुत महंगा है क्या’. बेटी को कुछ खरीदकर नहीं दे पाने की मजबूरी दिल में चुभती है.

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दीपक बताते हैं कि माता पिता गांव में रहते हैं. उन्हें शुरुआत में नहीं मालूम था कि मेरे साथ क्या हो रहा है. उन्हें यह भी नहीं मालूम था कि उनकी बहू परिवार के दो वक्त के भोजन के लिए इडली बेच रही है. लेकिन मीडिया के माध्यम से उन्हें भी जानकारी हो ही गई. हालांकि वह भी बीमार रहते हैं. अपनी लाचारी को बयां करते हुए वह बताते हैं कि जिस पिता को कमाकर मुझे पैसे भेजने चाहिए थे. आज उन्हें मैं शर्म से फोन नहीं कर पाता.

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