सच्चिदानंद/पटना. 3 नंवबर की रात जब धरती कांपी तो लोग डर गए. लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें. लोगों के मन में 2015 और उससे पहले आए भूकंप की याद ताजा हो गई थी. पूरी रात लोग अपने घरों के बाहर बैठकर सुबह होने का इंतजार करते रहे. मौसम विज्ञान केंद्र पटना से प्राप्त जानकारी के अनुसार काठमांडू से 334 किलोमीटर दूर धरती के 10 किलोमीटर भीतर इसका केंद्र था. इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.4 मापी गई, जो रेड जोन में आता है. यानि कि खतरनाक श्रेणी में आता है. नेपाल में स्थित केंद्र के आसपास भारी तबाही की तस्वीरें सामने आई है. हालांकि, बिहार में जान माल के नुकसान की कोई जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन एक के बाद कई झटकों ने लोगों को उस भूकंप की याद दिला दी, जिसमें बिहार के कई जिले बर्बाद हो गए थे.
बिहार का सबसे खतरनाक भूकंप
मौसम विज्ञान केंद्र पटना के वैज्ञानिक आशीष कुमार ने बताया कि प्रदेश ने अपने इतिहास में भी कई भूकंप देखे हैं. बिहार का सबसे भयानक और खतरनाक भूकंप 1934 (Bihar 1934 Earthquake) में आया था. इस भूकंप ने करीब 10,000 लोगों को मौत की नींद सुला दिया था. 15 जनवरी 1934 के उस दिन को जब लोग याद करते हैं, तो डर से सिहर जाते हैं. आज के समय में भी बिहार के इतिहास में सबसे काला दिन है. 1934 में आए भूकंप में बिहार का मुंगेर और मुज्जफरपुर बर्बाद हो गया था. 15 जनवरी की दोपहर करीब 2.13 बजे जब पूरा बिहार मकर संक्रांति के अगले दिन कंपकंपा देने वाली ठंड में धूप का आनंद ले रहे थे, तभी अचानक से धरती कांपने लगी. भूकंप इतनी भयानक थी कि कई जगहों पर जमीन भी फट गई. केंद्र माउंट एवरेस्ट के दक्षिण में लगभग 9.5 किमी पूर्वी नेपाल में स्थित था. इस दौरान बिहार के पूर्णिया से लेकर चंपारण तक और काठमांडू से लेकर मुंगेर तक सबसे अधिक असर हुआ था. इन्हीं इलाकों में ज्यादा जानमाल की क्षति हुई थी. इस दिन आए भूकंप की तीव्रता 8.5 थी.
हर तरफ तबाही का था मंजर
इस भूकंप को देखने वाले लोग अपनी पीढ़ियों को कहानी के जरिए उस मंजर को याद कर सिहर जाते हैं. भूकंप का डर इतना गहरा था कि सालभर लोगों को हर पल भूकंप जैसा महसूस होता था. मुजफ्फरपुर में भूकंप के कारण धूल मिट्टी से लोगों की सांस फूलने लगी थी. हर तरफ मलबा ही देखने को मिलता था. रेत के कारण कई स्थानों पर पानी का स्तर कम हो गया था. इस भूकंप का असर आज भी मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, दरभंगा में देखा जा सकता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आज भी पुरानी इमारतें तिरछी हैं. इसके बाद साल 1988 में भूकंप आया था. सितंबर 2011 में भी सिक्किम में भूकंप आया था, जिसका असर बिहार में भी दिखा था.
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FIRST PUBLISHED : November 5, 2023, 18:01 IST