कभी नहीं देखी होगी भगवान गणेश की ऐसी प्रतिमा! गायें भी आरती में होती हैं शामिल

दीपक पाण्डेय/खरगोन. मध्यप्रदेश के खरगोन जिले का हर गली चौराहा भक्तिमय हो गया है. अलग – अलग स्वरूप में भगवान गणेश की स्थापना की गई है. कहीं प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) की मूर्तियां है तो कहीं मिट्टी की मूर्तियां विराजमान है. लेकिन जिस मूर्ति की हम बात कर रहे है, वह गोबर और गौमूत्र से बनी है. जो अपने आप में अन्य सभी से अनोखी है.

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि शायद ही ऐसी प्रतिमा कहीं और विराजित हुई होगी. धार्मिक दृष्टिकोण से गोबर में मां लक्ष्मी का प्रतिरूप माना जाता है. इसीलिए गोबर की मूर्ति स्थापना से एक साथ तीन देवी – देवता धन, विधा और शक्ति की पूजा यहां हो रही है.

यह प्रतिमा खरगोन शहर के गांधीनगर स्थित गौशाला में स्थापित की गई है. खासियत है की यह प्रतिमा केवल गाय के गौबर और गौमूत्र से बनाई गई है. आयोजन समिति द्वारा मूर्ति को गोबर गणेश नाम दिया गया है. बिना किसी खर्च के लगभग 5 फिट ऊंची और 51 किलो से ज्यादा वजनी यह मूर्ति मात्र 7 दिन में बनकर तैयार हुई है. अनोखे, अद्भुत और ईको फ्रेंडली भगवान गणेश के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त गौशाला पहुंच रहे है.

7 दिन में बनकर तैयार हुई मूर्ति

गौमाता सेवा संस्थान एवं उपचार केंद्र के राजू सोनी बताते है की संस्था के मनोज शर्मा और साथियों ने 7 दिन की कड़ी मेहनत से गौ माता के पवित्र गोबर और गोमूत्र से यह गोबर गणेश का स्वरूप यहां विराजित किया है. इसके पीछे का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण का संदेश देना, जनजागृति लाना भी है. मूर्ति बनाने में 75 प्रतिशत गाय का गोबर और गौमूत्र इस्तेमाल किया गया है. 25 प्रतिशत काली मिट्टी का उपयोग हुआ है.

चतुर्भुज रूप में है विराजमान

चतुर्भुज रूप में विराजित भगवान गणेश के एक हाथ में मोदक प्रसाद है. दूसरे हाथ में चक्र है. तीसरे हाथ में शंख है जबकि चौथे हाथ से बप्पा अपने भक्तों को आशीर्वाद दे रहे है. जबसे गौशाला में बप्पा की स्थापना की गई है तब से रोजाना सुबह – शाम गौशाला की गाएं भी भगवान की आरती में शामिल हो रही है. भक्तों को भगवान गणेश के साथ साथ गौमाता का भी आशीर्वाद मिल रहा है.

खाद के रूप में रूप में भी उपयोगी

गौ सेवक राजू सोनी का कहना है पीओपी और मिट्टी की मूर्तियां तो सभी स्थापित करते है, इसलिए समिति ने गाय के गोबर से मूर्ति बनाने का निर्णय लिया. पीओपी की प्रतिमाओं के विसर्जन से जल प्रदूषण बढ़ता है, वातारण भी प्रदूषित होता है. जबकि गोबर और गौमूत्र से बनी बप्पा की प्रतिमा पर्यावरण के काफी फायदेमंद है. वातावरण के लिए भी अनुकूल है. इसके विसर्जन के बाद खाद के रूप में भी उपयोग में लिया जा सकता है.

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