हिना आज़मी/ देहरादून. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में अनेकों प्राचीन मंदिर हैं.यहां का टपकेश्वर महादेव मंदिर महाभारत काल से भी पुराना मंदिर है. मान्यताओं के अनुसार, गुरु द्रोणाचार्य ने यहां तपस्या की थी. उनकी पत्नी और वह स्वयं भोलेनाथ की तपस्या में लीन रहते थे. एक बार जब उनके पुत्र अश्वत्थामा को पिलाने के लिए दूध चाहिए था, तो भोलेनाथ ने आशीर्वाद से यहां दूध की धाराओं को प्रवाहित किया था. युग बदलने के साथ दूध की धाराएं अब जल में परिवर्तित हो गईं.हमेशा पानी टपकने के कारण ही इस मंदिर का नाम टपकेश्वर महादेव मंदिर रखा गया.
टपकेश्वर महादेव मंदिर के महंत भारत गिरी जी महाराज ने बताया कि टपकेश्वर मंदिर महादेव का ऐतिहासिक मंदिर है. यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग जयतो जायश्वर के नाम से जाना जाता है. यहां देवता तपस्या करते थे और उसके बाद ऋषि मुनियों ने यहां तपस्या करना शुरू किया. इसी वजह से उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. गुरु द्रोणाचार्य ने भी टपकेश्वर महादेव की इन गुफाओं में तपस्या की थी. जिसके बाद उन्हें भोलेनाथ ने तपेश्वर के रूप में दर्शन दिए और पुत्ररत्न के रूप में अश्वत्थामा का जन्म हुआ. यही स्थान अश्वत्थामा की जनस्थली और तपस्थली कही जाती है.
उन्होंने कहा कि अश्वत्थामा के पिता गुरु द्रोण और माता कृपि दोनों ही भगवान शिव के उपासक थे. अश्वत्थामा को माता कृपि स्तनपान नहीं करवा पा रही थीं. जिसके बाद उन्होंने भोलेनाथ से अपनी इस समस्या के निवारण के लिए प्रार्थना की, तो भगवान शिव ने अपनी कृपा से गुफा में दूध की धारा प्रवाहित कर दी. कलयुग के आते-आते यह दूध पानी में बदल गया लेकिन आज भी गुफा के अंदर मौजूद इस मंदिर में पानी टपकता रहता है, इसलिए ही इसे टपकेश्वर कहा जाता है.
गुरुग्राम से टपकेश्वर मंदिर दर्शन करने आई प्रिया बताती हैं कि उनका मायका देहरादून में है और वह बचपन से ही इस मंदिर के दर्शन करने आ रही हैं.उनकी शादी गुरुग्राम में हुई है, तो वह करीब 3 से 4 साल बाद यहां दर्शन करने आई हैं, जिससे उन्हें बहुत ही शांति मिली है.
कहां है टपकेश्वर महादेव मंदिर?
अगर आप भी देहरादून के ऐतिहासिक टपकेश्वर महादेव के मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं, तो आप घंटाघर से गड़ी कैंट पहुंचें, जहां यह मंदिर स्थित है.
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FIRST PUBLISHED : March 2, 2024, 14:56 IST
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