कभी किराया भरने के नहीं थे पैसे, अब नेशनल गेम्स लॉन बॉल में जीता गोल्ड

शिखा श्रेया/रांची. कहते हैं अगर कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो फिर आर्थिक स्थिति या कोई और अड़चन बाधा नहीं बनती. ऐसी ही कहानी है देवघर की छोटी गुप्ता की. जिन्होंने रांची में रहकर लॉन बॉल की प्रैक्टिस की और गोवा में आयोजित हुए नेशनल गेम्स में स्वर्ण पदक लाकर पूरे झारखंड का नाम रोशन किया है. छोटी गुप्ता झारखंड के केंद्र विश्वविद्यालय की बीटेक की छात्रा है और पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने लॉन बॉल में भी अपना झंडा गाड़ा है.

छोटी गुप्ता ने लोकल 18 से खास बातचीत के दौरान कहा कि घर की आर्थिक स्थिति इतनी सही नहीं थी. पापा एक छोटे व्यापारी हैं और मां ग्रहणी हैं. इसके अलावा मेरी एक बड़ी बहन है मयूरी. मेरी बहन खेल में काफी दिलचस्पी रखती है. एनएसएस के द्वारा वह मलेशिया और जापान जैसी कंट्री में खेलने गई है. उन्हीं को देखकर मुझे खेल में अच्छा प्रदर्शन करने की प्रेरणा मिली.

झारखंड के लिए पहला स्वर्ण पदक जीत लिया
छोटी ने बताया कि राष्ट्रीय खेल में झारखंड के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता है. लॉन बॉल एकल महिला मैने स्वर्णिम सफलता पाई. फाइनल मुकाबले में मैने बंगाल की वीणा को 21-13 से हराया व सेमीफ़ाइनल में असम की नयनमनी सैकिया को 21-12 से हराया था. नयनमनी को हराना इतना आसान नहीं था. वह कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडलिस्ट हैं और अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित हैं. उनसे जीतना मेरे लिए बहुत गर्व की बात है.

उन्होंने आगे बताया कि घर की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी. चुकी लॉन बॉल खेलने के लिए एक अच्छे ग्राउंड की जरूरत पड़ती है और यह ग्राउंड रांची में ही थी. इसीलिए मुझे रांची में किराए के मकान में रहना पड़ा.आलम तो यह था कि मेरे पास किराए देने के लिए पैसे नहीं थे. लेकिन मेरे कोच आशीष झा ने कहा कि वह किराए का पैसा देंगे. तुम बस प्रैक्टिस करते रहना, उनकी यह बात सुन मुझे लगा कि मेरे कोच मेरे ऊपर इतना भरोसा कर रहे हैं तो मुझे भी किसी हाल में उनके सपने को पूरा करना है.

सबसे कम उम्र में नेशनल गेम्स में लॉन बॉल में स्वर्ण पदक
छोटी गुप्ता एकल महिला लॉन बॉल में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बनी हैं. छोटी गुप्ता ने बताया कि मैं सबसे कम उम्र में नेशनल गेम्स में लॉन बॉल एकल महिला में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला बनी हूं और इसका मुझे और मेरे परिवार को काफी गर्व है. पिछले दो महीने से मैं इस मैच के लिए कड़ी प्रैक्टिस कर रही थी. दिन में 8 से 9 घंटे की कड़ी प्रैक्टिस होती थी और रात में अपनी पढ़ाई करती थी. हालांकि यह बहुत थकाने वाला था, लेकिन जब अपने परिवार और कोच का मेरे प्रति इतना विश्वास देखा,तो सारी तो थकान अपने आप दूर हो जाती थी.

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