कब है पितृ विसर्जन अमावस्या? क्या है इसका महत्व? देवघर के ज्योतिषी से जानें तिथि व शुभ मुहूर्त

परमजीत कुमार/ देवघर.पितृपक्ष चल रहा है. इसमें पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध तर्पण और पिंडदान किया जाता है. सितंबर महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरुआत होती है. वहीं, अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की अमावस्या तिथि को समाप्त होगा. वही ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि पितृपक्ष 15 दिनों तक चलता है. इस दौरान तिथि के अनुसार पितरों को पिंडदान और श्राद्ध तर्पण आदि भी किया जाता है. पितृपक्ष में विसर्जन अमावस्या का खासा महत्व है.

देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने लोकल 18 को बताया कि आश्विन माह की अमावस्या तिथि को पितृ विसर्जन किया जाता है. इसलिए इसे पितृ विसर्जन अमावस्या भी कहते हैं. 15 दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष में अगर पिंडदान नहीं कर पाते हैं तो अमावस्या में पिंडदान, श्राद्ध, तर्पण आदि करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और वह अपने वंश को आशीर्वाद देते हैं. इसके साथ-साथ ही जिन परिवारों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद नहीं रहती वह परिवार पितृ विसर्जन अमावस्या के दिन श्राद्ध तर्पण कर सकते हैं. जिनकी अकाल मृत्यु हुई रहती है उनका श्राद्ध भी अमावस्या के दिन ही किया जाता है.

पितृ विसर्जन अमवास्या का शुभ मुहूर्त

इस साल पितृ विसर्जन अमावस्या 14 अक्टूबर दिन शनिवार को मनाया जाएगा. पिंडदान श्राद्ध और तर्पण के लिए सबसे उत्तम दिन पितृ विसर्जन अमावस्या माना जाता है. वहीं अमावस्या की शुरुआत 13 अक्टूबर सुबह 11बजकर 29 मिनट से होने जा रहीहै. अमावस्या तिथि का समापन अगले दिन यानी 14 अक्टूबर दिन शनिवार दोपहर 2बजकर 43 मिनट में होगा. उदयातिथि को मानते हुए पितृ विसर्जन अमावस्या 14 अक्टूबर को मनाया जाएगा.

इस तरह करें पितृ विसर्जन:

ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि हमारे पूर्वज सूक्ष्म रूप से 15 दिनों के लिए धरती पर आते हैं. जिसे पितृपक्ष भी कहते है और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की अमावस्या तिथि को चले जाते हैं. इस दिन पितरों की विदाई दी जाती है.माना जाता है कि जो पितर प्रसन्न होकर धरती से जाते हैं उनके परिवार के घर में सुख समृद्धि बनी रहती है.पितृ विसर्जन के दौरान पितरों की विदाई धूमधाम से करनी चाहिए. इस दिन प्रात :काल उठकर स्नान कर पीपल के पेड़ पर पितरों का ध्यान कर गंगाजल, तिल, चीनी चावल और सफेद पुष्प अर्पण करना चाहिए. साथ ही पूजा कर पितरों से क्षमा याचना मांगना चाहिए.

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