कब है देवउठनी, गन्ना का क्यों किया जाता है उपयोग,पंडित से जानें कितने दीए जलाएं

लखेश्वर यादव/जांजगीर चांपा: देवउठनी एकादशी का त्योहार हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है. इस साल, यह त्योहार 23 नवंबर 2023 को गुरुवार को आएगा. इसे प्रबोधनी एकादशी और देवउठनी ग्यारस के नामों से भी जाना जाता है. इस दिन तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह गन्ने के मंडप के नीचे किया जाता है, और गन्ने की पूजा भी इस दिन की जाती है. देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है, और यह एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है जो धार्मिक महत्व के साथ मनाया जाता है.

बसंत तिवारी महाराज ने देवउठनी एकादशी के महत्व को साझा करते हुए बताया कि इस दिन मां तुलसी और भगवान विष्णु के विवाह में गन्ने का मंडप बनाया जाता है. इसलिए इस दिन गन्ने का विशेष महत्व होता है और इसी दिन से किसान गन्ने की नई फसल की कटाई का काम शुरू करते हैं. मौसम के बदलने के साथ इस दिन से लोग गुड़ का सेवन करने को बहुत लाभकारी मानते हैं. गुड़ को गन्ने के रस से बनाया जाता है, इसलिए इस दिन गन्ने की पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है. गन्ने को मीठे का शुभ स्रोत माना जाता है और इस दिन गुड़ का सेवन करने से घर में सुख, शांति, और समृद्धि बनी रहती है.

देवउठनी पर जलाएं 11 दीए
पंडित बसंत महाराज ने बताया कि इस साल देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को मनाई जाएगी. इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति अपने घर के तुलसी चौरा के पास चावल और आटे से रंगोली (चौक) बनाते हैं. इसके बाद गन्ने का मंडप तैयार करने के बाद, मां तुलसी और भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप की पूजा होती है.  इस पूजा में विशेष रूप से 11 दीप जलाए जाते हैं.

शुभ कार्यो की होगी शुरुआत
आषाढ़ माह में देवशयनी एकादशी से लेकर चातुर्मास मास तक, देवता शयन में रहते हैं. उसके बाद, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है. इस दिन से चातुर्मास का समापन होता है, क्योंकि भगवान विष्णु शयन निद्रा से बाहर आ जाते हैं. इस दिन से शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. इसी दिन से शादी के शुभ मुहूर्त की खोज शुरू हो जाती है.

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