कब है अचला सप्तमी? बन रहा ये खास योग, सभी पापों का होगा नाश, जानिए शुभ मुहूर्त

अभिनव कुमार/दरभंगा. इस जन्म के साथ सात जन्मों के पाप से मुक्ति चाहते हैं तो अचला सप्तमी का व्रत करें. मिथिलांचल में अचला सप्तमी का विशेष महत्व है. इस बार 16 फरवरी को अचला सप्तमी मनाई जाएगी. इस पर विशेष जानकारी देते हुए कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर ज्योतिष विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉक्टर कुणाल कुमार झा बताते हैं कि इस बार अचला सप्तमी 16 फरवरी को मनाई जाएगी. इस व्रत में कुछ विधि विधान हैं, जिसको पूरा करने से बहुत लाभ मिलता है.

डॉक्टर कुणाल कुमार झा बताते हैं कि इस दिन सिर पर अकोन के सात पत्ते और चिड़चिड़ी के सात पत्ते कांख में और पैर के नीचे बेर का पत्ता रख कर स्नान करते हुए मिथिलांचल में एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है. मिथिला क्षेत्र में जिन शब्दों को बोलकर इस विधि से स्नान किया जाता है वह शब्द है ‘एरिन बैरिन पैर तर, सिर महादेव माथ पर’. इसमें विधान है जो अचला सप्तमी के दिन बद्री पत्र और बेर के सात पत्ते और अकोन के सात पत्ते अपने सिर पर रख कर स्नान करने से इसी जन्म का पाप और साथ में सात जन्मों के पाप का नाश हो जाता है. इसके साथ रोगों से मुक्ति की प्राप्ति होती हैं.

इस पर्व के दौरान नमक नहीं खाया जाता
मिथिलांचल में यह परंपरा है. इस पर्व के दौरान नमक नहीं खाया जाता है. इस अचला सप्तमी में यह सात पत्तों के साथ स्नान करना शुभ होता है. सिर पर सात पत्ते एकॉन के और सात पत्ते कांख में चिड़चिड़ी के और पैर के नीचे बेर के सात पत्ते रख कर स्नान करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करते हैं. ‘एरिन बैरिन पैर तर, सिर महादेव माथ पर’ तो आपके कष्ट दूर हो जाएंगे, वहीं आपके दुश्मनों का भी नाश होगा. कुल देवता के पास पातर दान का भी विधान होता है. यह सूर्य उपासना का उत्तम समय होता है. यह मिथिलांचल की प्रमुख पर्वों में से है.


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