कबड्डी खिलाड़ी तैयार करने वाले कोच ने दर्द किया बयां, जानें किन समस्याओं से जूझ रहे कैमूर के खिलाड़ी

दिलीप चौबे/कैमूर: गांव की गलियों से निकलकर अंतरराष्ट्रीय फलक पर कबड्डी ने अपनी एक अलग पहचान स्थापित की है. भारतीय माटी से निकल, यह खेल कभी गांव में समय व्यतीत करने और मनोरंजन के लिए खेला जाता था. कबड्डी अब दुनिया के सामने एक ऐसे पेशेवर खेल में तब्दील हो गया है. जिसमें रोमांच के साथ जज्बा तो है हीं, साथ हीं कामयाबी का हर फॉर्मूला भी मौजूद है. कबड्डी का स्वरूप अब सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि देश के बाहर भी लोकप्रियता की सीढ़ियां चढ़ने लगा है. कबड्डी पब्लिक सेक्टर, रेलवे, सर्विसेस में नौकरी के लिए हुआ करता था. लेकिन, अब यह उस मुकाम से भी आगे निकल गया हैं. इन सब के बावजूद गांव की गलियों से निकलने वाले कबड्डी खिलाड़ियों को प्रशिक्षण के लिए जो मदद मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल रही है. भभुआ में भी कमोबेश यही स्थिति है और संसाधन के अभाव में प्रतिभा कुंठित हो रही है.

अजीत कबड्डी खिलाड़ियों को देते हैं नि:शुल्क प्रशिक्षण
भभुआ के खिलाड़ियों को नि:शुल्क कबड्डी का प्रशिक्षण देने वाले कोच अजीत कुमार ने बताया कि कबड्डी का खेल तो देश में पहले भी था, लेकिन उसे 40 मिनट के कंप्लीट पैकेज के तौर पर तैयार करने से उसके प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ी और धीरे-धीरे लीग के जरिए कबड्डी लोकप्रिय होती गई. अजीत कुमार ने बताया कि वह कबड्डी का प्रशिक्षण देते हैं और जिला सहित राज्य और देश का नाम रोशन करने के लिए खिलाड़ियों को निःशुल्क तैयार कर रहे हैं. भभुआ में सबसे बड़ी समस्या ग्राउंड को लेकर है. यहां कबड्डी खेलने के लिए एक भी ग्राउंड नहीं है. कबड्डी मैट पर खेला जाता है, लेकिन यहां का खिलाड़ियों को मजबूरन मिट्टी पर खेलना पड़ता है. कबड्डी के लिए 10/13 का ग्राउंड होना चाहिए. जगह की कमी के कारण छोटे ग्राउंड में बच्चों को ट्रेनिंग देने का काम कर रहे हैं.

कबड्डी खिलाड़ियों को नहीं मिल रहा है उचित संसाधन
अजीत ने बताया कि भभुआ में एकमात्र खेलने योग्य जगह जगजीवन स्टेडियम है, लेकिन इस जगह मेला लग जाने से कबड्डी हीं नही, सभी खेल बाधित हैं. उन्होंने बताया कि फिलहाल 16 से 17 बच्चों को प्रशिक्षण दे रहे हैं. सिलेक्शन होने पर सभी नेशनल खेलने के लिए जाएंगे. इन बच्चों को पिछले दो साल से प्रशिक्षण दे रहे हैं. इसमें 5 से 6 प्लेयर स्टेट प्लेयर हैं. कबड्डी क्षेत्रीय खेल है, इसलिए जहां भी यह खेल होता है, उस खेल का हिस्सा बने के लिए चले जाते हैं और जीत कर आते हैं. अगर सुविधा मिले तो ये बच्चे देश का नाम रोशन करेंगे. खिलाड़ियों के पास फील्ड, लाइट, किट, मैट जैसे मूलभूत सुविधा की कमी है.

सुविधाओं के अभाव के साथ सपोर्ट भी नहीं
इंटर के छात्र सह कबड्डी खिलाड़ी रौनक सिंह ने बताया कि लॉकडाउन से खेलना शुरू किया था. अब स्टेट टीम के लिए सिलेक्शन हो गया है. सुविधाओं का आभाव हैं और कोई सपोर्ट नहीं मिलता हैं. जो कुछ सहयोग मिलता है उसमें ट्रेनर अजीत कुमार का हीं रहता है. अजीत अपने दो से ढाई घंटे का समय प्रतिदिन खिलाड़ियों को देते हैं. रोशन ने बताया कि हमारा लक्ष्य सिर्फ कबड्डी खेलना है. प्रेक्टिस करने के लिए छोटा सा ग्राउंड खुद ही तैयार किया हैं.

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