कन्फ्यूजन और कोर्स करेक्शन के बीच नीतीश के ‘हाथ’ बेबसी, ‘अपने’ दिखा रहे आईना!

हाइलाइट्स

एमपी विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार के सियासी दांव के क्या है मायने?
इंडिया अलायंस की अंदरुनी राजनीति में अभी कहां खड़े हैं नीतीश कुमार?
लालू यादव-कांग्रेस की नजदीकी में क्या किनारे कर दिए गए नीतीश कुमार?
आखिर क्यों इंडिया अलायंस के दलों को शिद्दत से है 3 दिसंबर का इंतजार?

पटना. मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव को लेकर जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने दूसरी लिस्ट जारी करते हुए पांच और उम्मीदवार के नाम जारी किए तो लगा कि इस बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) कांग्रेस और भाजपा के बीच बैलेंस करने की कोशिश कर रहे हैं. दरअसल, जदयू (JDU) ने अब तक मध्य प्रदेश में जिन दस उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं उनमें पांच-पांच सीटों पर या तो कांग्रेस या भाजपा के प्रत्याशी जीते हैं. ऐसे में अब सवाल उठता है कि आखिर नीतीश कुमार की राजनीतिक मंशा या फिर रणनीति क्या है?

दरअसल, जदयू ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों की पहली लिस्ट बीते मंगलवार को जारी की तो अचानक ही इंडिया अलायंस के भीतर हलचल मचती दिखी. यह हलचल उसकी अगली कड़ी थी जब समाजवादी पार्टी ने एमपी इलेक्शन लड़ने का ऐलान करते हुए अपने प्रत्याशी भी मैदान में उतार दिए. इसके बाद जब नीतीश कुमार के जदयू ने पहली लिस्ट जारी कि तो इनमें वो चार सीटें थीं जिसपर कांग्रेस 2018 का चुनाव जीत चुकी थी.

पहली लिस्ट से इंडिया अलायंस के ‘बागी’ बने नीतीश!
आइए देखते हैं वो कौन सी सीटें थीं जहां जदयू ने सीधे तौर पर कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं. चंद्रपाल यादव को जेडीयू ने पिछोर विधानसभा सीट से मैदान में उतारा तो वहीं, रामकुंवर रैकवार को राजनगर, शिव नारायण सोनी को विजय राघवगढ़, तोल सिंह भूरिया को थांदला और रामेश्घर सिंघार को पेटलावद से चुनावी रण में उतारा. इनमें पिछोर, राजनगर, थांदला और पेटलावाद पर 2018 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. इसके अतिरिक्त एक सीट विजय राघवगढ़ में भाजपा की जीत हुई थी.

मची हलचल तो नीतीश कुमार ने किया कोर्स करेक्शन
इनमें पिछोर सेआईएनसी (इंडियन नेशनल कांग्रेस) से केपी सिंह, राजनगर से आईएनसी से विक्रम सिंह नातीराज, थांदला से आईएनसी से वीर सिंह भूरिया और पेटलावद से आईएनसी से बालसिंग मेडा ने जीत दर्ज की थी. वहीं विजय राघवगढ़ से भाजपा से संजय पाठक जीते थे. जब जदयू ने सूची जारी की तो इंडिया अलायंस के भीतर खलबली मच गई. नीतीश कुमार के बागी होने की खबरें आने लगीं. ऐसे में सियासी जानकारों की नजर में नीतीश कुमार ने जल्दी ही कोर्स करेक्शन किया और दूसरी लिस्ट जारी कर दी.

बैलेंस करने की जुगत में नीतीश ने जारी की दूसरी लिस्ट
जदयू की दूसरी सूची पर गौर करें तो नीतीश कुमार ने यहां मामला उल्टा कर दिया और पहले के कांग्रेस के विरोध में 4-1 के बाद भाजपा के खिलाफ 4-1 की लिस्ट जारी कर दी. जदयू ने पांच ऐसी सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए जिनमें पिछले विधान सभा चुनाव (2018) में चार पर भाजपा के विधायक चुने गए थे. इनमें नरयावली से भाजपा प्रदीप लारिया, बहोरीबंद से भाजपा से प्रणय पांडे, जबलपुर उत्तर से भाजपा से राकेश सिंह और बालाघाट से भाजपा से गौरीशंकर बिसेन चनाव जीते थे. इनमें एक सीट गोटेगांव से आईएनसी से नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने चनाव जीता था.

नीतीश कुमार की रणनीति को लेकर उठ रहे सवाल
यहां गौर करनेवाली बात ये है कि इंडिया अलायंस में होते हुए भी पहली लिस्ट में जेडीयू ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के सामने ही अपने उम्मीदवार उतार दिए थे. ये तीनों पार्टियां ही I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल हैं इसलिए सियासी पारा हाई कर दिया. लेकिन, जब इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की ओर से रुख कड़ा किया गया तो ऐसा लगता है कि सीएम नीतीश अपनी रणनीति को बैलेंस करते दिखने लगे. ऐसे में जानकार कहते हैं कि या तो नीतीश कुमार कन्फ्यूज हैं या फिर कांग्रेस के आगे बेबस हैं.

लालू-नीतीश की सियासी मोहब्बत और अदावत!
राजनीति के जानकार बताते हैं कि जिस तरह से कांग्रेस ने धीरे-धीरे इंडिया गठबंधन में नीतीश कुमार के महत्व को कम कर दिया है इससे वे बेहद नाराज हैं. लेकिन उनके सामने कोई रास्ता नहीं दिख रहा है. अब तक नीतीश कुमार जिस तरह बैलेंसिंग फैक्टर वाली राजनीति बिहार में करते रहे हैं, इस बार भाजपा के कड़े रुख से यह संभव होता नहीं दिख रहा है. ऐसे में लालू प्रसाद यादव भी अपना छोटा भाई बताते हुए कई बार अपनी ओर से नीतीश कुमार को आईना दिखाने से पीछे नहीं हट रहे हैं.

क्या कांग्रेस-राजद के बीच नीतीश अनवांटेड हैं?
हाल में आनंद मोहन के गांव में जब नीतीश कुमार पहुंचे तो लालू यादव नहीं पहुंचे. इसी तरह श्री कृष्ण सिंह के जयंती समारोह में लालू को कांग्रेस ने न्योता दिया और चीफ गेस्ट भी बनाया, लेकिन नीतीश कुमार को पूछा तक नहीं. जाहिर है जहां एमपी में नीतीश कुमार कांग्रेस को तेवर दिखा रहे हैं, वहीं बिहार में कांग्रेस नीतीश कुमार को अपने रवैये से आहत कर रही है. इसका एक पहलू राजनीतिक जानकारों की नजरों में यह है कि सोनिया गांधी की कांग्रेस और लालू यादव के राजद का गठजोड़ स्वाभाविक दिखता है और नीतीश कुमार इसमें अनवांटेड से लगते हैं.

पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव परिणाम पर नजर
ऐसे में अब सवाल यह कि आने वाले समय में राजनीति क्या मोड़ ले सकती है? सियासत को गहराई से जानने वाले कहते हैं कि आगामी 3 दिसंबर के बाद एक हफ्ते में देश की राजनीति में कांग्रेस और नीतीश कुमार, दोनों की भूमिका तय हो जाएगी. अगर कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में से तीन राज्यों में जीतती है तो इंडिया अलायंस की आगामी राजनीति पूरी तरह कांग्रेस के हाथ में होगी, ऐसे में नीतीश कुमार की भूमिका सीमित हो रह जाएगी. वहीं, कांग्रेस अगर बहुत अच्छा नहीं कर पाई तो नीतीश कुमार फिर केंद्रीय भूमिका में आने की उम्मीद कर सकते हैं.

एक तरफ राजद और दूसरी ओर भाजपा, बीच में नीतीश
हालांकि, सियासत के जानकार बिहार की स्थिति से भी इसे जोड़ते हैं और लालू यादव की यह महत्वाकांक्षा यह कि, उनके पुत्र तेजस्वी यादव बिहार के मुख्यमंत्री की गद्दी संभालें, रह-रहकर नीतीश कुमार के उन्हें कभी नजदीक तो कभी दूर ले जाते हैं. असल में बेबसी और कन्फ्यूजन के बीच भी नीतीश कुमार की राजनीति अभी भी बैलेंसिंग फैक्टर वाली है और उन्होंने भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से अपना बिगाड़ नहीं किया है. अब गृह मंत्री अमित शाह भी नीतीश कुमार पर उतने हमलावर नहीं हैं, वहीं भाजपा के अधिकतर नेताओं के निशाने पर नीतीश कुमार से अधिक अब लालू यादव रहते हैं. ऐसे में सबको अब बड़ी बेसब्री से तीन दिसंबर का इंतजार है जब इन पांचों राज्यों के चुनाव परिणाम आएंगे.

Tags: 2024 Lok Sabha Elections, 2024 लोकसभा चुनाव, Bihar News, Bihar politics, CM Nitish Kumar, Lalu Yadav News, Loksabha Election 2024

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *