कनाडा प्रकरण में अमेरिका की भूमिका को देखते हुए भारत को बेहद सतर्क रहने की जरूरत है

कुख्यात आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में कनाडा ने जिस तरह से बिना सबूत के भारत पर आरोप लगाए हैं, उसके बाद से भारत और कनाडा के संबंधों में लगातार तल्खी आती जा रही है। निज्जर हत्याकांड में कनाडा द्वारा लगाए गए बेतुके आरोप की वजह से भारत और कनाडा के रिश्तों पर तो बुरा असर पड़ ही रहा है लेकिन इस पूरे मामले में कई जानकारी के सामने आने के बाद अब अमेरिका के रुख को भी लेकर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।

अमेरिका ने पहले फाइव आईज के खुफिया मंच का दुरुपयोग कर जिस तरह से पहले कनाडा को गलत जानकारी देकर भारत के खिलाफ उकसाने का काम किया और बाद में जिस तरह से इस मामले में बयान देकर भारत पर दबाव बनाने का प्रयास किया, उससे यह साफ-साफ नजर आ रहा है कि अमेरिका ने भारत के खिलाफ षड्यंत्र किया, साजिश रची और दोस्त कहकर भारत की पीठ में खंजर घोंपने का काम किया।

ऐसे में अब बड़ा सवाल तो यह खड़ा हो रहा है कि आखिर अमेरिका चाहता क्या है ? एक तरफ अमेरिका अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत और भारत के नेतृत्व की तारीफ कर रहा है, भारत को अपना सबसे करीबी दोस्त और सामरिक साझेदार बता रहा है तो दूसरी तरफ भारत के खिलाफ इस तरह से षड्यंत्र रच रहा है, यह जानते हुए भी कि यह मुद्दा भारत के लिए कितना संवेदनशील है।

चीन की आक्रामक नीति से परेशान अमेरिका एक तरफ जहां भारत को अपने एक मददगार देश के तौर पर देख रहा है, दोनों ही देश चीन की आक्रामक नीतियों के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं, संयुक्त सैन्याभ्यास कर चीन को संकेत दे रहे हैं, आर्थिक मोर्चे पर लगातार नए-नए समझौते कर आर्थिक संबंधों को मजबूत कर रहे हैं। यहां तक कि रक्षा क्षेत्र में भी कई विकल्प होने के बावजूद भारत अमेरिका के साथ रक्षा समझौते कर उसकी अर्थव्यवस्था को मदद देने का काम कर रहा है लेकिन इसके बावजूद अमेरिका की इस हरकत ने भारत को सतर्क कर दिया है।

अमेरिका ने न केवल कनाडा को गलत जानकारी देकर उसे भारत के खिलाफ भड़काया है बल्कि अपने बयान के जरिए भी भारत पर दबाव बनाने का प्रयास किया है। अमेरिका के इस दोहरे रवैये ने अब भारत को ठहर कर अमेरिका के साथ अपने संबंधों की गहराई के बारे में फिर से विचार करने का मौका दे दिया है क्योंकि अगर अमेरिका इस तरह से पीठ पीछे भारत के खिलाफ पहले षड्यंत्र करेगा और फिर बयान देकर दबाव बनाने का प्रयास करेगा तो निश्चित तौर पर भारत सरकार के लिए अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाने की दिशा में आगे बढ़ना मुश्किल होता चला जाएगा क्योंकि यह तो सर्वविदित तथ्य है कि अमेरिका को लेकर भारत में और भारतीयों में हमेशा से शंका का माहौल रहा है। अमेरिका ने जिस तरह से इतिहास में कई बार अपने करीबी दोस्तों तक को धोखा दिया है जिसका हालिया उदाहरण यूक्रेन-रूस युद्ध है, जिसमें अमेरिका ने पहले यूक्रेन को बढ़ावा दिया और जब लड़ाई यूक्रेन के घर में घुस गई है तो अमेरिका ने एक तरह से यूक्रेन से पल्ला झाड़ता हुए उसे रूस जैसी महाशक्ति के सामने अकेला ही छोड़ दिया है। लेकिन भारत जैसे विश्वसनीय और भरोसेमंद देश के साथ इस तरह की हरकत कर अमेरिका ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि वह कभी भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक भरोसेमंद देश नहीं बन सकता है और इसलिए भारत को उससे हमेशा ही सतर्क रहना पड़ेगा।

अमेरिका जहां एक तरफ चीन के डर के कारण भारत के साथ मजबूत सामरिक संबंध बनाना चाहता है तो वहीं दूसरी तरफ भारत की एकता और अखंडता को चुनौती देने वाले आतंकवादी तत्वों को पनाह देने वाले कनाडा का साथ देकर अपने दोहरे स्टैंड को ही एक बार फिर से उजागर कर दिया है। अमेरिका दशकों तक भारत को परेशान करने के लिए पाकिस्तान का भी इसी तरह से इस्तेमाल करता रहा है। लेकिन भारत बदल रहा है और अब समय आ गया है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को यह साफ-साफ बता दिया जाए कि सामरिक साझेदारी, व्यापार और आर्थिक समझौता भारत के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है लेकिन यह भारत की एकता-अखंडता और संप्रभुता से बढ़कर ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है और यह बात अमेरिका और उसके सहयोगी देश जितनी जल्दी समझ ले उतना ही यह विश्व की शांति के लिए बेहतर होगा।

-संतोष पाठक

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।)

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