कत्ल करने की जगह हमेशा मौजूद रहती है घर में- गौरव सोलंकी

7 जुलाई 1986 को उत्तर प्रदेश के ‘मेरठ’ में जन्मे गौरव सोलंकी का बचपन संगरिया, राजस्थान में बीता है. कविताएं लिखने का शौक गौरव में किशोरावस्था से ही था और यही वजह रही कि बीटेक करने के बावजूद उन्होंने बॉलीवुड के लिए कहानियां लिखना शुरु किया और काव्य लेखन के साथ-साथ गद्य लेखन की ओर उन्मुख हो गए और फील्मों में गीत लिखने के साथ-साथ पटकथा पर भी काम करना शुरु कर दिया. उनके द्वारा लिखी गई फिल्म ‘आर्टिकल 15’ ख़ासा चर्चित रही और हाल ही में सैफ़ अली ख़ान स्टारर ‘तांडव’ सीरीज़ की वजह से गौरव काफी चर्चा में रहे और दर्शकों द्वारा इस वेब सीरीज़ को बेहद पसंद भी किया गया.

आपको बता दें कि गौरव सोलंकी हिंदी के वह युवा लेखक हैं, जिन्होंने साहित्‍यिक संस्‍था भारतीठ ज्ञानपीठ के साल 2011 के ‘नवलेखन पुरस्कार’ को ठुकरा दिया था और ज्ञानपीठ के साथ अपनी दो किताबों का प्रकाशन अधिकार भी वापस ले लिया था. उसके बाद उन्होंने भारतीय ज्ञानपीठ को एक बेबाक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने पुरस्कार को सम्मान की बजाय अपमान बताया था. इससे ये बात तो तय है कि गौरव लेखन का काम नेम-फेम के लिए नहीं बल्कि आत्मिक सुख के लिए करते हैं और पुरस्कारों की भीड़ में बिल्कुल शामिल होना नहीं चाहते. हालांकि पुरस्कार मिलने से पहले गौरव की भारतीय ज्ञानपीठ से ‘सौ साल फ़िदा’ पुस्तक आ चुकी थी.

गौरव की कविताओं में एक अलग तरह का खिंचाव है, जो आंखों के सामने विचलित कर देने वाली तस्वीर खींचती हैं. उनकी कविताओं की महक ऐसी जिसकी सोंधी मिट्टी-सी खुशबू कब जलते बारूद की तरह धधकने लगे मालूम ही नहीं चलता. कविताएं में डाली में लगे फूल जब ज़मीन पर गिरते हैं, तो अंगारों में तब्दील हो जाते हैं. अपने आस-पास की दुनिया को वह बाकी लोगों से अलग तरह से गढ़ते हैं. उनकी कविताओं में नए शब्दों, नए अहसासों का जन्म एकसाथ होता है. उनके लेखन में बड़ी-बड़ी इमारतें और तिलिस्मी बातें नहीं, न ही प्रेम में चांद-तारे तोड़ लाने का वादा, बल्कि निम्न-मध्यवर्गीय शहर में अनगिनत उदास खिड़कियां नज़र आती हैं और उनमें से झांकते गौरव सोलंकी.

गौरव की कविताओं में किस्सागोई कूट-कूट कर भरी है, बस पढ़ते हुए उन्हें समझने और पकड़ने की काबिलियत होनी चाहिए. उनकी कविताओं से गुज़रने से पहले पाठक को अपने व्यक्तिगत जीवन की अंधेरी गलियों से गुज़र कर आना होगा, तभी वे गौरव की रचनाओं के ताप को महसूस कर पाएंगे. उनकी कहानियां सोशल मीडिया से लेकर बाकी के मंचों पर कई बार हलचल पैदा कर चुकी हैं… नकली, अनैतिक और अश्लील होने का भी इल्ज़ाम झेल चुकी हैं, लेकिन सच तो यही है कि जो जैसा है उसे ठीक वैसा ही दिखाना लेखक के लेखन का सबसे ज़रूरी और ईमानदार हिस्सा है.

गौरव का कहानी और कविता कहने का अंदाज़ उन्हें बाकी के रचनाकारों और अपने समकालीनों से विशेष और अलग दिखाता है. छोटे शहरों और कस्बों की नागरिक उदासी को गौरव की युवा कलम जितने कौशल से तस्वीरों में ढालती है, वह चमत्कृत करनेवाला है. उन्हें पढ़ने के बाद कोई भी उनका फैन हो जाएगा. प्रस्तुत है गौरव की लंबी कविता ‘क़त्ल करने की जगह हमेशा मौजूद रहती है घर में’, इसे पढ़ें और खुद तय करें कि इनके लेखन में कोई तो अनोखी बात है-

कविता : क़त्ल करने की जगह हमेशा मौजूद रहती है घर में
कमरे दो हों या हज़ार
क़त्ल करने की जगह हमेशा मौजूद रहती है घर में
मैं एक फंदा बनाके बैठा रहा कल सारी रात
कि तुम जगोगी जब पानी पीने

मैंने अपनी इस आस्था से चिपककर बिताई वह पूरी रात
कि गले में कुछ मोम जमा हुआ है मेरे और तुम्हारे
और वही ईश्वर है
जो हमें बोलने, उछलने और खिड़की खोलकर कूद जाने से रोकता है
जम्हाई लेने से भी कभी-कभी
पर कसाई होने से नहीं

कैसे बिताई मैंने कितनी रातें, इस पर मैं एक निबंध लिखना चाहता हूं
इस पर भी कि कैसे देखा मैंने उसे सोते हुए,
सफेद आयतों वाले लाल तकिये पर उसके गाल,
वह मेरे रेगिस्तान में नहर की तरह आती थी
वह जब सांस लेती थी तो मैं उसके नथुनों में शरण लेकर मर जाना चाहता था
उसकी आँखें उस फ़ौजी की आंखें थीं, जिसने अभी लाश नहीं देखी एक भी
और वह हरे फ़ौजी ट्रक में ख़ुद को लोहे से बचाते हुए चढ़ रहा है
जैसे बचा लेगा

यूं वो इश्क़ में खंजरों पर चली

अजायबघरों की तरह देखे उसने शहर
सुबह से रात तक पसीना पोंछते,
कभी ख़ुद की, कभी दूसरों की देह नोचते लोग
और आत्मा महज़ एक उपकरण थी
जिसे जब बच्चों को डराने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा होता था
तो कोई भी कवि किसी भी शब्द की जगह रख देता था उसे

हम जब इतने क़रीब लेटे थे एक रात
और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान की किसी कहानी की तरह
ब्रैड का एक सूखा टुकड़ा हमारे बीच पड़ा था,
मैंने उससे कहा कि काश मैं तुम्हारे लिए एक अंगीठी ला सकता
और आपको विश्वास न हो भले ही, विश्वास पाना मेरा काम भी नहीं,
लेकिन उससे लम्बे समय तक कभी किसी और बात ने नहीं किया मुझे उदास

मैं जब हंसता था
तो वह परियों की तरह सोती थी

फिर मैं बार-बार उसका अपहरण कर लाता रहा
हम माफ़ियों को कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से लेने लगे
मृत्यु के सिरहाने भी की हमने कई दफ़े अपराध की बातें, बेशर्मी से
वह मुझ पर बरसने के लिए समंदर में डूबती रही महीनों
और इससे ज़्यादा मुझे याद नहीं

एक औरत एक थैला लेकर अतीत में जा सकती है
मुझे अकेले भी नहीं आता यह

मुझे टाई ठीक से बांधना सिखाया मेरी मां ने,
एक हाथ से तोड़ना रोटी का कौर
लेकिन नसीब उसका कि
प्रेम के बारे में वह कुछ ख़ास नहीं जानती थी

वैसे भी प्यार के गीतों के ख़िलाफ़ एक साज़िश में
गैर-इरादतन ही सही, पर मुब्तिला हूं मैं लगातार
और जब आप इस सावधानी के साथ सो रहे हों
कि सुबह उठते ही किसी बिच्छू पर ना पड़े पैर
तो मुझे नहीं लगता कि ख़ुशबुएं पहचानने की कोई कला आपके साथ सोएगी

उसने मुझे घर चुना, मैंने उसमें खोदे गड्ढ़े
उसका शरीर जीतने की ज़िद में उसकी आत्मा लौटाई मैंने कई मर्तबा
पर पसीने से इस कदर भीगा था मेरा गला
मुझे ऐसे डराया था ऊंचे कद के कुछ लड़कों ने स्कूल में
कि मैं उसे चूमता था तो इम्तिहान देता था जैसे

नल से पानी पीते हुए
मैं अब भी पीछे मुड़कर देखता हूं बार-बार पेड़ों की तरफ़,
अंधेरे में पायल बजती हैं मेरी छाती पर,
कोई औरत ज़रा नरमी से मेरा हाथ पकड़े
तो मुझे लूट सकती है किसी भी सरकार की तरह,
यहां मैं अपने अपाहिज होने का कहूं
तो आपको इश्तिहार लगेगा कोई

ख़ैर, ज़हर मिलाया मैंने उसकी चाय में
और गला मन से बड़ा नहीं होता, आप जानते ही हैं,
फिर मैं ब्रश करने गया
और लौटकर आया तो वह एक घोड़े पर लेटी थी,
अपनी नज़र पर मुझे यक़ीन नहीं हालांकि.

चादर जब धुलने गई तो धोबी ने कहा कि
पचास बार क्यों लिखते हैं आप इस पर अपना नाम?

Tags: Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature, Poem

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