कंप्यूटर से भी तेज चाहते हैं बच्चों की याददाश्त? तो जन्म के बाद करें यह काम

गुलशन कश्यप/जमुई. प्राचीन काल से बच्चों के पैदा होने के बाद उसे अलग-अलग संस्कार का हिस्सा बनाया जाता था. गर्भधारण करने से लेकर ही बच्चों की यह संस्कार शुरू हो जाते थे. इन्हीं सोलह संस्कारों में से एक संस्कार ऐसा भी था जिसे बच्चों की याददाश्त बढ़ाने के लिए किया जाता था. ऐसी मान्यता है कि इस संस्कार के जरिए बच्चों के दिमाग को तेज बनाया जा सकता है. इतना ही नहीं इस संस्कार के जरिए बच्चों के जीवन में आने वाले सभी कष्ट और राहु केतु के प्रभाव को भी दूर किया जाता था. क्या आप इस संस्कार के बारे में जानते हैं. आज हम आपको इसी संस्कार के बारे में बताएंगे और यह भी बताएंगे कि इसका इसकी सही उम्र इसके लिए बच्चों के सही उम्र कितनी होनी चाहिए.

जानिए क्यों किया जाता था यह खास संस्कार
16 संस्कारों में से एक कर्णवेध संस्कार भी है, जिसमें बच्चों के कान छिदवाए जाते थे. पौराणिक मान्यता है कि ऐसा करने के पीछे एक बड़ी वजह थी. ज्योतिषाचार्य पंडित शत्रुघ्न झा बताते हैं कि कर्णवेध संस्कार करने से बच्चों की याददाश्त को बढ़ाया जाता था. यही कारण है कि प्राचीन काल में बच्चों की याददाश्त को प्राचीन काल में बच्चों के कान छिदवा दिए जाते थे. उन्होंने बताया कि इसके पीछे का ज्योतिषी कारण भी है.

बताया जाता है कि कान छिदवाने से बच्चों पर राहु और केतु का प्रभाव नष्ट हो जाता है. दुष्ट आत्माएं भी उनसे दूर रहती है. उन्होंने बताया कि आजकल भले ही लोग फैशन में कान छिदवाते हैं, परंतु पूर्व के जमाने में बच्चों का कान छिदवाना अत्यंत आवश्यक होता था.

कान छिदवाने की सही उम्र और वैज्ञानिक कारण
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि कान छिदवाने के पीछे का वैज्ञानिक कारण भी छिपा हुआ है. माना जाता है कि कान छिदवाने से बच्चों का मस्तिष्क तेज होता है. इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ती है. उन्होंने बताया कि कान छिदवाने के लिए सबसे सही उम्र बच्चों के पैदा होने के दसवें, बारहवें, सोलहवें दिन या छठे, सातवें या आठवें महीने में किया जा सकता है.

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इसके अलावा शून्य से तीन और पांच से सात वर्ष की आयु तक में भी बच्चों के कान छिदवाये जा सकते हैं. ज्योतिषाचार्य ने यह भी बताया कि प्राचीन काल में जब बच्चे गुरुकुल जाते थे, तो उस वक्त उनके कर्णवेध संस्कार किया जाता था.

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