कमल पिमोली/ श्रीनगर गढ़वाल. अगर आप पारंपरिक खेती से परेशान हो चुके हैं, अच्छा मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं तो आप जड़ी-बूटियों की खेती कर सकते हैं. वैसे तो जड़ी-बूटियों की खेती के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्र उपयुक्त माना जाता है, लेकिन कई ऐसी जड़ी-बूटियां भी हैं, जो मैदानी इलाकों अथवा मध्य हिमालयी क्षेत्रों में भी आसानी से उग जाती हैं. ऐसी ही एक औषधीय जड़ी बूटी है कलिहारी, जिसे अग्निशिखा के नाम से भी जाना जाता है. यह कई औषधीय गुणों से भरपूर है. इस पौधे का केवल एक हिस्सा ही नहीं बल्कि इसकी जड़ से लेकर पत्तों तक हर भाग में औषधीय गुणों की खान हैं, जिनसे दवाइयां तक बनाई जाती हैं.
कलिहारी यानी की अग्निशिखा 200 से लेकर 1300 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है. इसकी खेती फायदे का सौदा है. पुराने समय में लोग इसका प्रयोग कई रोगों को ठीक करने के लिए भी करते थे. आज भी दवा कंपनी से लेकर लोक जीवन में इसका खूब प्रयोग होता है.
औषधीय गुणों से भरपूर कलिहारी
उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल में स्थित उच्च शिखरीय पादप कारकी शोध केन्द्र (हेप्रेक) की डॉ. वैशाली चंदोला ने बताया कि कलिहारी को लेकर उन्होंने शोध भी किया है. कलिहारी में एल्कलॉइड, ग्लोरियोसीन पाया जाता हैं, जो कई तरह की बीमारियों के लिए कारगर दवा हैं. सांप के काटने में कलिहारी का प्रयोग लाभदायक है. वहीं डॉ वैशाली जानकारी देते हुए बताती हैं कि गठिया, इंफर्टिलिटी समेत कैंसर व अन्य कई बीमारियों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.
सीधे तौर पर प्रयोग घातक!
डॉ वैशाली चंदोला कहती हैं कि बाजार में अग्निशिखा/कलिहारी की काफी डिमांड है. अगर उत्तराखंड के उन इलाकों में जो गर्म रहते हैं, वहां के लोग कलिहारी की खेती करें, तो यह नकदी फसल बन सकती है. साल या दो साल में ही यह औषधि तैयार हो जाती है. वह कहती हैं कि इस औषधि का सीधे तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. यह थोड़ा जहरीला भी है, ऐसे में सीधे तौर पर प्रयोग घातक भी साबित हो सकता है. आयुर्वेद में भी इसके प्वाइजन को न्यूट्रलाइज करने की प्रक्रिया होती है.
कमाल की औषधि है कलिहारी
डॉ वैशाली चंदोला कहती हैं कि अगर आप कम लागत में अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो कलिहारी की खेती आपके लिए एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है. यह एक बेल की तरह बढ़ने वाली फसल है. यह 6 मीटर तक बढ़ सकती है. इसकी जड़ों से लेकर पत्तों व बीज का उपयोग दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है. वैसे तो कलिहारी किसी भी तरह की मिट्टी में हो सकती है, लेकिन रेतीली व लाल मिट्टी इसके लिए उपयुक्त है.
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FIRST PUBLISHED : February 16, 2024, 14:35 IST
Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.