ऐसा क्‍या हुआ कि हाईकोर्ट हो गया एक मजिस्‍ट्रेट से इतना नाराज, कहा- अपने हिसाब से कानून बना रहे हो… और कर दिया 10000 का फाइन

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में वित्तीय संपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा हित प्रवर्तन अधिनियम (सरफेसी अधिनियम) के तहत कार्यवाही से निपटने के दौरान कानून की “अपनी सुविधा के अनुसार” व्याख्या करने के लिए एक अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) की आलोचना की. एसएमएफजी इंडिया क्रेडिट कंपनी लिमिटेड बनाम एडीएम इंदौर एवं अन्य मामले की सुनवाई के दौरान ऐसा हुआ.

न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा की पीठ ने इंदौर में एडीएम पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया, यह मानते हुए कि उनके कार्यों के कारण न्यायालय का समय बर्बाद हुआ है.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने अपने आदेश में कहा गया, “इस न्यायालय की राय है कि जानबूझकर अपनी सुविधा के अनुसार कानून की व्याख्या करने के लिए संबंधित अधिकारी पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए… अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, इंदौर पर कीमती समय बर्बाद करने के लिए 10,000/- रुपये का जुर्माना लगाया जाता है. इस अदालत का उपयोग अधिक दबाव वाले मामलों पर निर्णय लेने में किया जा सकता था.”

अदालत एक ऐसे मामले का निपटान कर रही थी, जहां एक सुरक्षित ऋणदाता ने एडीएम की कुछ कार्रवाइयों के कारण SARFAESI अधिनियम के तहत वसूली की कार्यवाही रुकने की शिकायत की थी.

अदालत को बताया गया कि जब सुरक्षित ऋणदाता ने सरफेसी अधिनियम की धारा 14 के तहत कब्जे के लिए एक आवेदन के साथ उनसे संपर्क किया तो एडीएम ने उधारकर्ताओं को जवाब देने के लिए समय देकर अधिनियम के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया था. 28 जून के आदेश द्वारा, एडीएम ने लेनदार के धारा 14 आवेदन को भी खारिज कर दिया.

न्यायालय ने एडीएम के कार्यों की आलोचना करते हुए कहा कि जिला मजिस्ट्रेट के पास सरफेसी अधिनियम के तहत ऐसी न्यायिक शक्तियां नहीं हैं.

न्यायालय ने कहा, “इस न्यायालय के साथ-साथ शीर्ष अदालत ने भी बार-बार दोहराया है कि जहां तक सरफेसी अधिनियम की धारा 14 का संबंध है, डीएम/एडीएम की भूमिका निर्णय लेने की नहीं है.”

पीठ ने यह भी कहा कि यह दूसरी बार है जब ऋणदाता को मामले में अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा. अदालत को बताया गया कि ऋणदाता के पक्ष में उच्च न्यायालय द्वारा पारित पहले के आदेश की एडीएम/कलेक्टर द्वारा अवहेलना की गई थी.

इसके अलावा, न्यायालय ने एडीएम द्वारा उनके द्वारा पारित 28 जून के आदेश को वापस लेने के लिए दायर एक आवेदन पर भी गंभीरता से विचार किया, जिसका पीठ ने यह अर्थ निकाला कि एडीएम को मनमाने ढंग से शक्तियों का प्रयोग करने की “आदत” थी.

ऐसा क्‍या हुआ कि हाईकोर्ट हो गया एक मजिस्‍ट्रेट से इतना नाराज, कहा- अपने हिसाब से कानून बना रहे हो... और कर दिया 10000 का फाइन

इस सबके कारण न्यायालय ने एडीएम को भविष्य में इस तरह के आचरण में शामिल न होने की चेतावनी दी.

हाईकोर्ट ने कहा कि “चेतावनी के एक शब्द के रूप में यह न्यायालय उम्मीद करता है कि भविष्य में कम से कम अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट उच्च न्यायालय और शीर्ष न्यायालय द्वारा पारित आदेशों का अक्षरशः पालन करेंगे और आदेशों की व्याख्या करने में स्वयं साहस नहीं करेंगे.”

अपने आदेश में पीठ ने ऋणदाता को राहत देते हुए एडीएम के 28 जून के आदेश को पलट दिया. एडीएम को मामले में नया आदेश जारी करने का आदेश दिया गया. इसके साथ ही याचिका का निस्तारण कर दिया गया.

Tags: High Court News Bench, Madhya Pradesh High Court

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