एलन मस्क ने लॉन्च किया नासा का PACE, समुद्र के वातावरण और क्लाइमेट पर नजर

NASA Satellite PACE : अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने गुरुवार (8 फरवरी) को अपने नए सैटेलाइट PACE को लॉन्च किया. ये सैटेलाइट भारत के समयानुसार दोपहर 12.03 पर लॉन्च किया गया. इस सैटेलाइट को अमेरिका के केप कैनावेरल के स्पेस लॉन्च कॉम्प्लेक्स 40 (Space Launch Complex 40 ) से भेजा गया. इस सैटेलाइट को एलन मस्क के स्पेस-एक्स(Space X) के फाल्कन 9 रॉकेट (Falcon 9 ) की मदद से लॉन्च किया गया. ये सैटेलाइट खास तौर पर समुद्र, वातावरण और क्लाइमेट पर नजर रखेगा.

 

PACE का पूरा नाम प्लैंक्टन, एरोसोल, क्लाउड, ओसियन इकोसिस्टम (Plankton, Aerosol, Cloud, ocean Ecosystem) है. यह सैटेलाइट वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करेगा कि क्लाइमेट चेंज समुद्र के फाइटोप्लांकटन(Phytoplankton) लेयर को कैसे प्रभावित कर रहा है.

क्या होता है फाइटोप्लांकटन(Phytoplankton) ?

फाइटोप्लांकटन को माइक्रोएल्गी भी कहा जाता है. ये समुद्र के ऊपरी परत में पाया जाता है. ये एल्गी हरे रंग का परत होता है जो सूरज की रोशनी की मदद से अपना भोजन बनाता है. फाइटोप्लांकटन समुद्र के फूड चेन का जरूरी हिस्सा है. इसे समुद्र की छोटे मछलियों से लेकर कई समुद्री जीव भी खाते हैं. फिर इन छोटी मछलियों को बड़ी मछलियां खा जाती हैं, और ये साइकिल ऐसे ही चलता रहता है. बता दें कि समुद्र में कई टन वजन वाले व्हेल भी इस माइक्रोएल्गी को खाते हैं.

 

6 फरवरी को होना था लॉन्च

PACE हवा में धूल और धुएं जैसे पार्टिकल्स के बादल बनने की प्रक्रिया को समझने में मदद करेगा. इतना ही नहीं ये प्लानेट के गर्म और ठंडे होने पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने में भी मदद करेगा. बता दें कि ये मिशन 6 फरवरी को लॉन्च होने वाला था, लेकिन खराब मौसम की वजह से इसे कई बार टाला गया. आमतौर पर सैटेलाइट पहले टेम्परेरी ऑर्बिट (Orbit) में एंट्री करते हैं और फिर परमानेंट ऑर्बिट में जाते हैं. PACE को सीधे अपनी फाइनल ऑर्बिट में भेजा गया है. इस फास्ट प्रोसेस को ‘इफेक्टिव इंस्टैन्टेनियस लॉन्च’ नाम से जाना जाता है.

जिस ऑर्बिट में PACE को भेजा गया है उसे ‘सन सिंक्रोनस ऑर्बिट’ कहते हैं. इसका मतलब है कि ये हमेशा सूर्य के रेस्पेक्ट में एक ही पोजीशन में सिंक्रनाइज़ रहेगा. और आसान करके कहें तो ये हर एक ऑर्बिट के लिए एक ही लोकल टाइम पर पृथ्वी के भूमध्य रेखा (equator) को पार करेगा. इससे होगा ये कि जिस एंगल पर सूर्य पृथ्वी पर रोशनी भेजता है, ये सैटेलाइट हर वक्त उसी पोजीशन में सेट रहेगा और इससे मिलने वाली इमेज भी स्थिर रहेगी.



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