एमपी के इकलौते कार सेवक, जिनकी ढांचा गिराते वक्त हुई थी मौत, दर्दनाक कहानी

(रवि रमन त्रिपाठी) भिंड. सन 1990 और 92 में कार सेवकों का बलिदान भुलाया नहीं जा सकता. बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराने से लेकर भव्य श्रीराम मंदिर बनने तक की राह में सनातनियों को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा. अब हर सनातनी का सपना साकार हो रहा है. बलिदान देने वाले इन्हीं कार सेवकों में एक थे भिंड जिले के डांग छैकुरी के रहने वाले पुरुषोत्तम दास उर्फ पुत्तू बाबा. बताया जाता है कि पुत्तू बाबा कार सेवा के दौरान प्राण देने वाले मध्य प्रदेश के इकलौते कार सेवक थे. 6 दिसंबर सन 1992 को वे बाबरी मस्जिद के गुंबद पर चढ़े हुए थे.

वे वहां शिलालेख उखाड़ रहे ते, तभी शिलालेख से एक बड़ा पत्थर उखड़कर सीधे उनकी नाभि पर गिरा. इससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए. उन्हें इलाज के लिए एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनकी जान नहीं बची. उन्होंने रामकाज करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. News18 की टीम पुत्तू बाबा के जीवन से जुड़ी कहानी जानने उनके घर पहुंची. यहां उनके बेटे कुशलपाल सिंह ने कई बातें बताईं. उन्होंने कहा कि पुरुषोत्तम दासबाबा उस्त स्तरीय पढ़े-लिखे शख्स थे. कद काठी में भी वे सभी से अलग दिखते थे. वे रोज रामचरितमानस का पाठ करते थे. वे हमेशा लोगों के बीच बैठकर श्री राम के चरित्र का गुणगान किया करते थे वह हमेशा यह भी कहते भी थे कि ‘ रामकाज कीने बिना मोहि कहां विश्राम.’

घलवालों की एक नहीं सुनी
कुशलपाल ने बताया कि परिवारवालों ने बाबा को अयोध्या जाने से रोका, लेकिन वे नहीं माने. उन्होंने कहा कि अगर कोई साधन नहीं भी मिला, तो मैं साइकिल पर अयोध्या जाऊंगा. जाऊंगा जरूर, बाबरी मस्जिद का विध्वंस करके वापस आऊंगा. 1992 में भिंड से 60 से ज्यादा लोगों का दल कारसेवा के लिए अयोध्या गया था. पुत्तू बाबा के परिवार के अन्य सदस्य भिंड के डांग छैकुरी में रहते हैं. लेकिन बाबा के दोनों बेटे अपनी मां सरला देवी के साथ यूपी के जिला जालौन में रहते हैं.

कई चीजों के शौकीन थे बाबा
पुत्तू बाबा चार भाइयों में सबसे छोटे थे. उन्हें खाने और पहनने का बहुत शौक था. रबड़ी उन्हें सबसे ज्यादा पसंद थी. सिंचाई विभाग में ओवरसियर के पद से रिटायर होने के बाद वे राम काज मे लीन हो गए. जब राम मंदिर आंदोलन शुरू हुआ तो वे बेहद उत्साहित थे. 1992 में जब कारसेवा की बारी आई तो पुत्तू बाबा ने भी इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. अयोध्या जाने से पहले अपने परिजनों और ग्रामीणों से वे बोल कर गए थे कि लौटूंगा तो विवादित ढांचा गिराकर ही लौटूंगा.

पुलिस से मिली निधन की सूचना
कार सेवा के दौरान पुत्तू बाबा के निधन की सूचना घरवालों को दूसरे दिन पुलिस से मिली. सरयू नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया और अस्थियां कार सेवक ही गांव लेकर आए. पुत्तू बाबा के नाती पूर्व सैनिक रामनारायण सिंह ने कहा कि हमें इस बात का गर्व है कि आज जहां रामलला विराज रहे हैं उसके संघर्ष में हमारे बाबा ने भी बलिदान दिया. पहले तो गम था, लेकिन अब जब अयोध्या में श्री राम का मंदिर बनकर तैयार हो रहा और प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, तो मन को बहुत खुशी है. 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की खबर आई तो हमें लगा कि हमारे बाबा का बलिदान व्यर्थ नहीं गया. उनकी आत्मा को सही मायने में शांति मिलेगी.

प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण न मिलने से परिवार दुखी
पुत्तू बाबा की 95 साल की पत्नी सरला देवी यूपी के जालौन जिले के धंतौली गांव में दोनों बेटों के साथ रहती हैं. वो ज्यादा बात नहीं कर सकतीं, लेकिन रामलला का मंदिर बनने से खुश हैं. उनके बेटे कुशलपाल ने कहा कि हम अपने परिवार और ग्रामीणों के साथ हनुमान चालीसा का पाठ कर भंडारे आदि का आयोजन कराएंगे. भगवान श्रीरामलाल की प्राण प्रतिष्ठा पर पूरे दिन उत्सव मनाएंगे. हालांकि, पुत्तू बाबा के बेटे कुशलपाल ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि उत्सव का और आनंद मिलता जब हमें भी प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाता. हमारी मांग है कि मंदिर प्रांगण में पुत्तू बाबा का स्मृति चिन्ह बनाया जाए. इससे उनकी भावी पीढ़ियां जब भी अयोध्या जाएं तो उनके त्याग और बलिदान की कहानी याद कर सकें.

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