एनसीएलएटी ने विप्रो के खिलाफ दिवाला कार्यवाही की याचिका खारिज की

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अपीलीय न्यायाधिकरण की दो-सदस्यीय चेन्नई पीठ ने पहले कहा था कि विप्रो और याचिकाकर्ता के बीच भुगतान को लेकर पहले से ही विवाद था। उन्होंने पाया कि दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) ‘लेनदारों के लिए महज वसूली कानून’ होने के लिए नहीं बनाई गई है।

 राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने विप्रो लिमिटेड के खिलाफ दिवाला कार्यवाही शुरू करने के लिए एक परिचालन ऋणदाता की याचिका को खारिज कर दिया है।
अपीलीय न्यायाधिकरण की दो-सदस्यीय चेन्नई पीठ ने पहले कहा था कि विप्रो और याचिकाकर्ता के बीच भुगतान को लेकर पहले से ही विवाद था। उन्होंने पाया कि दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) ‘लेनदारों के लिए महज वसूली कानून’ होने के लिए नहीं बनाई गई है।

एनसीएलएटी ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के आदेश को बरकरार रखा है।
एनसीएलटी की बेंगलुरु पीठ ने 16 जनवरी, 2020 को परिचालन ऋणदाता ट्राइकोलाइट इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीज की याचिका खारिज कर दी थी।
इस आदेश को दिल्ली स्थित परिचालन ऋणदाता ‘एलटी/एचटी इलेक्ट्रिक पैनल्स’ के निर्माता ने अपीलीय निकाय एनसीएलएटी के समक्ष चुनौती दी थी।

हालांकि, एनसीएलएटी ने यह देखकर इसे खारिज कर दिया, “हम इस बात से संतुष्ट हैं कि प्रतिवादी कंपनी (विप्रो) द्वारा कुल चालान राशि का तीन प्रतिशत रोकना वास्तव में एक ‘विवाद’ था।”
आईबीसी के तहत, किसी भी कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया आम तौर पर केवल स्पष्ट मामलों में शुरू की जाती है, जहां पार्टियों के बीच बकाया कर्ज को लेकर कोई वास्तविक विवाद नहीं होता है।

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