शुभम मरमट/उज्जैन. बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में गजलक्ष्मी की भी महिमा अपार है. गजलक्ष्मी लक्ष्मी के आठ रूपों में से एक हैं. उज्जैन के मध्य सराफा बाजार में मां गजलक्ष्मी के मंदिर है, जहां 5 दिवसीय दीप पर्व पर श्रद्धालुओं का तांता लगता है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि गजलक्ष्मी का यह मंदिर करीब 2 हजार वर्ष पुराना है. इस मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है. गजलक्ष्मी माता राजा विक्रमादित्य की राजलक्ष्मी भी कहलाती हैं. हाथी पर सवार लक्ष्मी माता की दुर्लभ प्रतिमा विक्रमादित्य के समय की है जो आज भी अद्वितीय है.
प्रसाद मे बंटता है खास सिंदूर
भगवान का कोई भी प्रसाद हो वह खास ही रहता है, लेकिन गजलक्ष्मी मंदिर का सिंदूर प्रसाद साल में केवल एक दिन सुहाग पड़वा के दिन ही मिलता है. साल भर माता के दर्शन करने हज़ारों भक्त आते हैं, वे माता को सिंदूर चढ़ाते हैं. मंदिर के पुजारी इस सिंदूर को इकट्ठा कर साल भर में एक बार सुहाग पड़वा के दिन बांटते हैं. मान्यता है कि यह सिंदूर ले जाने से घर में मां लक्ष्मी का वास बना रहता है, इसलिए यहां दूर-दूर से श्रद्धालु यह प्रसाद लेने आते हैं.
सुहाग पड़वा पर लगती है कतार
रितु शुक्ला ( श्रद्धालु ) ने बताया कि वह यहां 30 साल से आ रही हैं. आज के दिन यहां काफ़ी लंबी लाइन देखने को मिलती हैं. यहां हर मनोकामना पूर्ण होती है. यह लक्ष्मी जी का मंदिर बेहद चमत्कारी है. दिवाली के समय यहां पर 5 दिवसीय उत्सव मनाया जाता है, जिसमें अंतिम दिन सुहाग पड़वा को प्रसाद के रूप में विशेष सिंदूर मिलता है. साल भर इस सिंदूर का बेसब्री से इंतजार रहता है. यह सिंदूर ले जाने से घर में मां लक्ष्मी का वास बना रहता है, इसलिए भारी संख्या में यहां पर दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 14, 2023, 13:54 IST