कमल पिमोली/ श्रीनगर गढ़वाल.भले ही देश (मोटे अनाज) के प्रति लोगों को जागरूक कर रहा हो, लेकिन मोटे अनाज की पैदावार में कमी देखने को मिल रही है. उत्तराखंड में सदियों से मोटे अनाज की पारंपरिक खेती होती आ रही है. यहां इन्हें बारह नाजा (12 अनाज) के नाम से भी जाना जाता है. वर्तमान में उत्तराखंड से मोटे अनाज की खेती करने से किसान बच रहे हैं. किसान पारंपरिक खेती छोड़ अब अन्य रोजगार के साधनों की ओर जा रहे हैं. जिसका सीधा असर मोटे अनाज (मडुवा, चोलाई, दाल, कोणी, झंगोरा आदि) की खेती पर पड़ रहा है. किसान भी अब मोटे अनाजों की खेती से दूरी बना रहे हैं. इसे लेकर किसानों के भी अपने तर्क है. वहीं दूसरी ओर गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग द्वारा किये गए एक शोध में भी कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये हैं.
1 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल घटा
अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर एमसी सती जानकारी देते हुए कहते हैं कि विभाग द्वारा चमोली व चंपावत जिले के 3000 किसानों का सर्वेक्षण किया, जिसमें यह पाया गया कि 2011 में जो 2.02 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल मोटे अनाजों के लिए था, वह घटकर 2023 में 1.20 लाख हेक्टेयर मात्र ही रह गया है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो 2030 तक मंडुवा, झंगोरा व चौलाई का क्षेत्रफल 73 हजार हेक्टेयर ही रह जायेगा. वह कहते हैं कि पर्वतीय क्षेत्र के किसान पारंपरिक तरीके से जैविक खेती करते हैं, बहुत कम किसानों को मालूम है कि जैविक अनाजों के दाम महंगे होते है, लेकिन बिचौलिये इनसे ओने-पौने दामों पर खरीद लेते हैं.
मोटे अनाज की 23 फसलों की होती थी खेती
वह आगे कहते हैं कि 2000 में जहां उत्तराखंड में मोटे अनाज की 23 फसलों की खेती होती थी, वह 23 साल बाद कम होकर मात्र 10 फसलें ही रह गई हैं जिनकी खेती वर्तमान समय में की जा रही है. यह उत्तराखंड की खेती के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है. चीणा, कोणी, फाफर, जौ आदि ऐसी फसल है, जो विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी है.
इन कारणों से दूरी बना रहे किसान
ग्रामीण संतोषी नेगी बताती है कि उनके यहां मंडुवा, कोदा, झंगोरा उगाया जाता है, लेकिन जंगली जानवरों के डर से अब उन्होंने खेती कम कर दी है. कहती हैं कि बंदर, जंगली सुअर पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं. कहती हैं कि मेहनत के अनुसार लाभ न मिलने के कारण गांव में भी कोई खेती नहीं करना चाहता है. केवल अपने उपयोग के लिए ही फसलें उगाई जाती है. प्रोफेसर सती का कहना है कि वर्तमान में जंगली जानवरों के कारण खेती पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. साथ ही किसानों को उनके अनाज का अच्छा दाम न मिल पाना, मौसम परिवर्तन के चलते फसलों का खराब होना भी किसानों के खेती से मुंह मोड़ने के कारण हैं. कहा कि इस विषय पर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. हालांकि मिलेट वर्ष घोषित करने के बाद से मोटे अनाजों के प्रति पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित हुआ है. ऐसे में अगर मिलेट पॉलिसी बने, तो किसानों को भी फायदा मिल सकता है.
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FIRST PUBLISHED : February 29, 2024, 15:05 IST