उत्तराखंड का वो मंदिर, जहां भोलेनाथ ने पांडवों को अर्धनारीश्वर रूप में दिए थे दर्शन

सोनिया मिश्रा/ गुप्तकाशी. देवभूमि उत्तराखंड की केदारघाटी में अर्धनारीश्वर मंदिर (Ardhanarishwar Temple Uttarakhand) स्थित है, जहां भोलेनाथ ने पांडवों को अर्धनारीश्वर रूप में दर्शन दिए थे. इस मंदिर की विशेष मान्यता है. रुद्रप्रयाग जिले के गुप्तकाशी में अर्धनारीश्वर मंदिर स्थित है, जिसकी स्थापत्य शैली केदारनाथ धाम के समान है. मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो द्वारपाल हैं. साथ ही प्रवेश द्वार के सर्वोच्च पर भैरव के समान छवि दिखाई देती है, जिसे भोलेनाथ का ही रूप कहा जाता है. मंदिर परिसर के भीतर मणिकर्णिका कुंड है, जिसमें निरंतर दो जलधाराओं का संगम होता है. उन्हें गंगा और यमुना कहा जाता है. दरअसल मंदिर के निकट ही बाई ओर से गुप्त गंगा और दाई ओर से गुप्त यमुना बहती है. इन दोनों का मिलन मणिकर्णिका कुंड में होता है.

अर्धनारीश्वर मंदिर (Guptkashi Temple) के पुजारी गंगाधर लिंग बताते हैं कि पांडवों ने इस मंदिर के नजदीक स्थित मणिकर्णिका कुंड से भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए जल लिया था. क्योंकि भोलेनाथ पांडवों से क्रोधित थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए जैसे ही उन्हें यहां पांडवों के पहुंचने का संकेत मिला, वह यहां से गायब हो गए. गंगाधर आगे बताते हैं कि उसके बाद पांडवों ने इस स्थान पर माता पार्वती का ध्यान किया और माता के ध्यान के बाद भोलेनाथ ने यहां अर्धनारीश्वर रूप में उन्हें दर्शन दिए. तब से भगवान यहां अर्धनारीश्वर रूप में विराजमान हैं. उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर से रुद्रप्रयाग का विश्वनाथ मंदिर अलग है क्योंकि उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव प्रकट हुए थे, इसलिए उन्हें वहां प्रकट काशी के नाम से जाना जाता है जबकि रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी में भगवान शिव गुप्त हो गए थे, इसलिए यह क्षेत्र गुप्तकाशी कहलाता है.

पांडवों को लगा गोत्र हत्या का पाप

पुजारी गंगाधर लिंग ने बताया कि महाभारत के युद्ध में जब पांडवों ने कौरवों की हत्या कर दी थी, तब उन्हें गोत्र हत्या का पाप लग गया था, जिसके निवारण के लिए पांडव भगवान शिव से मिलना चाहते थे लेकिन भोलेनाथ पांडवों से रुष्ट थे, इसलिए वह उनसे बचकर दूर छिप रहे थे. पांडवों से बचते हुए भोलेनाथ यहां पहुंचे थे लेकिन पांडव भी भोलेनाथ को खोजते हुए यहां पहुंच गए. भोलेनाथ को जैसे ही पांडवों के यहां पहुंचने का आभास हुआ, तो इसी स्थान से भोलेनाथ गुप्त हो गए, इसलिए इस स्थान को गुप्तकाशी के नाम से जाना जाता है.

कैसे पहुंचे?

बाय रोड: गुप्तकाशी उत्तराखंड के प्रमुख स्थलों से सड़कों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है.

बाय ट्रेन:
गुप्तकाशी के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है. इसके आगे का सफर आप कार या बस से कर सकते हैं.

बाय एयर:
देहरादून स्थित जौलीग्रांट हवाई अड्डा गुप्तकाशी का निकटतम हवाई अड्डा है. एयरपोर्ट से आप कार या बस आदि से मंदिर पहुंच सकते हैं.

(NOTE: इस खबर में दी गई सभी जानकारियां और तथ्य मान्यताओं के आधार पर हैं. LOCAL 18 किसी भी तथ्य की पुष्टि नहीं करता है.)

Tags: Dharma Aastha, Local18, Uttarakhand news

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