उत्तराखंड में निर्माणाधीन सुरंग के एक हिस्से के ढह जाने से उसमें फंसे श्रमिकों को बाहर निकाले जाने के बाद उनकी शारीरिक फिटनेस की जांच करने के साथ ही उन्हें मनोवैज्ञानिक परीक्षण और परामर्श से गुजरना होगा। यह सलाह चिकित्सकों ने दी है।
चार दिन पहले चारधाम मार्ग पर निर्माणाधीन सुरंग के एक हिस्से के ढह जाने से उसमें कुल 40 मजदूर फंस गए हैं।
अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि श्रमिक सुरक्षित हैं और उन्हें पाइप के जरिये लगातार ऑक्सीजन, बिजली, दवाएं, खाद्य सामग्री और पानी की आपूर्ति की जा रही है।
चिकित्सकों ने कहा कि यह घटना जीवित बचे लोगों के लिए सदमे की तरह हो सकती है क्योंकि वे शारीरिक तनाव के साथ-साथ मानसिक तनाव से भी गुजर रहे होंगे।
फोर्टिस अस्पताल, नोएडा के ‘इंटरनल मेडिसिन’ विभाग के निदेशक डॉ. अजय अग्रवाल ने कहा कि लंबे समय तक बंद स्थानों में फंसे रहने के कारण व्यक्तियों को घबराहट के दौरे पड़ सकते हैं।
अग्रवाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, इसके अलावा, ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर जैसी परिवेशीय स्थितियां भी उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकती हैं और ठंडे भूमिगत तापमान में लंबे समय तक रहने से संभवतः ‘हाइपोथर्मिया’ हो सकता है और वे बेहोश हो सकते हैं।’’
‘हाइपोथर्मिया’ एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें शरीर बाहरी तापमान की प्रतिक्रिया में अपने तापमान को नियंत्रित करने में विफल रहता है और इस प्रकार, उत्पन्न होने वाली गर्मी की तुलना में तेजी से गर्मी खोना शुरू कर देता है और इसलिए शरीर का तापमान असामान्य स्तर तक गिर जाता है।
अग्रवाल ने कहा कि जिन श्रमिकों को मधुमेह या हृदय रोग जैसी पुरानी स्वास्थ्य समस्याएं हैं, उनके लिए स्थिति खराब हो सकती है। उन्होंने कहा कि हालांकि भोजन और पानी की नियमित आपूर्ति उन्हें शारीरिक रूप से ठीक बनाए रख सकती है और निर्जलीकरण को रोक सकती है।
अग्रवाल ने कहा कि सुरंग से निकाले जाने पर, श्रमिकों की निर्जलीकरण या हाइपोथर्मिया की जांच करने की आवश्यकता होगी, जिसके लिए उन्हें उपचार की आवश्यकता हो सकती है।
उन्होंने कहा कि इस घटना से उन्हें मानसिक आघात पहुंचने की अत्यधिक आशंका है, जिसके लिए श्रमिकों को शारीरिक फिटनेस परीक्षण के साथ ही मनोवैज्ञानिक परीक्षण और परामर्श से गुजरना होगा।
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