उड़ीसा उच्च न्यायालय ने एक साल पहले लापता हुई लड़की के पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज की

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लगभग एक साल पहले कटक के बिदानसी इलाके से लापता हुई अपनी बेटी का पता लगाने के लिए व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। निमानंद बिस्वाल ने उच्च न्यायालय का रुख किया था और आरोप लगाया था कि पिछले साल अक्टूबर में मामला दर्ज किए जाने के बावजूद पुलिस ने उनकी लापता बेटी का पता लगाने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया।

 उड़ीसा उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि याचिका के लिए ‘अवैध रूप से बंदी बनाया जाना’ एक पूर्व शर्त होती है। लगभग एक साल पहले कटक के बिदानसी इलाके से लापता हुई अपनी बेटी का पता लगाने के लिए व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी।
निमानंद बिस्वाल ने उच्च न्यायालय का रुख किया था और आरोप लगाया था कि पिछले साल अक्टूबर में मामला दर्ज किए जाने के बावजूद पुलिस ने उनकी लापता बेटी का पता लगाने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया।

मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एसके साहू और न्यायमूर्ति एसएस मिश्रा की खंडपीठ ने इसे ‘‘लापता व्यक्ति’’ का मामला बताया और कहा कि अदालत के समक्ष ऐसी कोई सामग्री पेश नहीं की गई कि याचिकाकर्ता की बेटी को किसी ने अवैध रूप से बंदी बनाया है।
पीठ ने कहा, ‘‘बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका को आकस्मिक और नियमित तरीके से जारी नहीं किया जा सकता है। यह अधिकार की रिट है, लेकिन निश्चित रूप से कोई रिट नहीं है।’’
अदालत ने पिछले सप्ताह याचिका का निपटारा करते हुए कहा, ‘‘बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका जारी करने के लिए अवैध रूप से बंदी बनाया जाना एक पूर्व शर्त होती है।

इसे किसी भी लापता व्यक्ति के संबंध में जारी नहीं किया जा सकता है, खासकर तब जब किसी भी नामिक व्यक्ति पर अवैध रूप से बंदी बनाए जाने के लिए जिम्मेदार होने का आरोप नहीं लगाया गया हो।’’
पीठ ने बिस्वाल को अपनी लापता बेटी का पता लगाने के लिए अन्य प्रभावी उपाय अपनाने का सुझाव दिया।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।



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