आशुतोष तिवारी/रीवा: राजा महाराजाओं को हमेशा इस बात का डर हुआ करता था कि कहीं कोई व्यक्ति उन पर चोरी छिपे बंदूक से हमला न कर दे. इसी डर की वजह से बंदूक की गोली से बचने के लिए राजाओं और राज परिवार के सदस्यों के द्वारा अपने राजसी पोशाक के अंदर बुलेट प्रूफ जैकेट का इस्तेमाल किया जाता था. जिससे उनके सीने की सुरक्षा इस जैकेट से हो सके. ऐसे कई बुलेट प्रूफ जैकेट रीवा किला के अंदर बघेला म्यूजियम में रखे हुए है. लेकिन अब के बुलेट प्रूफ जैकेट और राजा महाराजाओं के बुलेट प्रूफ जैकेट में काफी अंतर हुआ करता था. पहले जैकेट में स्टील की जाली की बुनाई करने के बाद लेड का इस्तेमाल किया जाता था. इसलिए जैकेट वजनी हुआ करता था. इस जैकेट का वजन15 से 20 किलो तक होता था.
इतिहासकार असद खान ने कहा कि रीवा राज्य में पहली बार वर्ष 1890-1900 के दशक में बुलेट प्रूफ जैकेट मंगवाया गया था. वर्ष 1893 में कासिमिर ज़ेग्लेन के द्वारा सबसे पहले बुलेट प्रूफ जैकेट का अविष्कार किया गया था. इस अविष्कार के साल दो साल बाद ही तकरीबन 1995 के आस पास रीवा के तत्कालीन महाराजा वेंकटरमन सिंह ने खुद अपने लिए और फौज फाटक के प्रमुख ओह देदारों के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट विदेश से मंगवाया था. युद्ध के दौरान भी इन बुलेट प्रूफ जैकेट का इस्तेमाल किया जाता था. इतिहासकार असद खान ने बताया कि पहले बहुत महीन स्टील या लोहे की जंजीरों से बुलट पर जैकेट बनाई जाती थी. उन जैकेट में पतले पतले तारों से बुनाई की जाती थी. ये जैकेट युद्ध के दौरान तीर, कमान, तलवार, भाला और बंदूक की गोली से रक्षा किया करते थे.
बघेल म्यूजियम में आज भी रखी है ये जैकेट
रीवा के बघेला म्यूजियम में आज भी 1890- 1900 के दशक की बुलेट प्रूफ जैकेट सहेज कर रखी गई है. इस जैकेट को देखने के लिए और इस पर अध्ययन करने के लिए दूर-दूर से लोग इस संग्रालय में आते हैं. हालांकि इस म्यूजियम में और भी कई नायाब वस्तुओं का संग्रह किया गया है. जिसमें उस दौर की मशीन गन से लेकर पेन पिस्टल, ऐतिहासिक तलवारें और तोपों का संग्रह भी किया गया है. इतिहास कार असद खान ने बताया कि यह बुलेट प्रूफ जैकेट न सिर्फ इंसान के सीने की सुरक्षा के लिए था बल्कि पीठ की सुरक्षा भी इसी जैकेट के माध्यम से होती थी. यह जैकेट उस समय लाखों रुपए खर्च कर रीवा के राजा वेंकट रमण सिंह के द्वारा विदेश से मंगवाया गया था.
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FIRST PUBLISHED : February 25, 2024, 11:17 IST