भारत कई धर्म और आस्थाओं का केंद्र है. दुनिया के सभी धर्मों में चमत्कार की कहानियां सुनने को मिल जाती हैं. इनमें कुछ चमत्कारों की कहानियां किवदंतियों के तौर पर एक से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचती हैं तो कुछ आज भी होने वाले रहस्यमय कामों की वजह से पहचानी जाती हैं. ऐसे ही एक चमत्कार की कहानी मध्य प्रदेश के विदिशा में गंज बसौदा तहसील के उदयपुर गांव में महादेव के मंदिर से भी जुड़ी है. मान्यता के अनुसार, उदयपुर गांव के नीलकंठेश्वर मंदिर में जब हर सुबह कपाट खोले जाते हैं तो पुजारियों और सेवकों को शिवलिंग पर कुछ ऐसा मिलता है जो किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा सकता है.
स्थानीय लोगों के मुताबिक, हर सुबह जब नीलकंठेश्वर मंदिर के पट खुलते हैं तो शिवलिंग पर फूल चढ़ा हुआ मिलता है. स्थानीय लोग इस चमत्कार को लेकर कई कहानियां सुनाते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि परमार राजवंश के शासक शिव के उपासक रहे हैं. उन्होंने अपने 250-300 साल के राज में कई मंदिर बनवाए. नीलकंठेश्वर मंदिर का निर्माण परमार वंश के शासक राजा उदयादित्य ने करवाया था. मान्यता है कि बुंदेलखंड के सेनापति आल्हा और ऊदल महादेव के अन्यय भक्त थे. वही दोनों वीर हर रात यहां आकर महादेव की पूजा करने के बाद उन्हें कमल अर्पण करते है. फिर जब सुबह मंदिर के पट खोले जाते हैं तो महादेव के चरणों में फूल चढ़ा मिलता है. बता दें कि नीलकंठेश्वर मंदिर में रात को प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित है.

मान्यता है कि बुंदेलखंड के सेनापति आल्हा और ऊदल हर रात महादेव की पूजा करने आते हं.
मंदिर के शिखर पर दिखती आदमी की आकृति का क्या है राज
नीलकंठेश्वर मंदिर से जुड़ी एक दूसरी मान्यता भी है. लोगों का मानना है कि इस मंदिर को एक ही व्यक्ति ने रातों-रात बनाकर तैयार कर दिया था. वह व्यक्ति निर्माण पूरा कर मंदिर की चोटी से उतरकर नीचे आ गया था. तभी उसने ध्यान दिया कि उसका झोला ऊपर चोटी पर ही रह गया था. वह झोला उतारकर लाने के लिए फिर ऊपर चढ़ा. लेकिन, वह नीचे उतर पाता, उससे पहले ही मुर्गे ने बांग दे दी. ऐसे में वह व्यक्ति वहीं रह गया. इसलिए मंदिर के शिखर पर आज भी उस व्यक्ति का आकार देखा जा सकता है.
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मुगलों ने बाहर की प्रतिमाओं को नष्ट करने की कोशिश की
राजा उदयादित्य की नगरी में उदयपुर अब छोटी सी जगह में सिमट कर रह गया है. वहीं, नीलकंठेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ इकट्ठी होती है. यह मंदिर विदिशा की गंज बासौदा तहसील के रेलवे स्टेशन से महज 22 किमी की दूरी पर उदयपुर गांव में है. यह मंदिर बेजोड़ शिल्प का प्रतीक है. मंदिर की बनावट भोपाल के पास मौजूद भोजपुर महादेव मंदिर से मेल खाती है. मंदिर परिसर के चारों ओर बनी भगवान की प्रतिमाएं अब खंडित हो गई हैं. उन्हें बुरी तरह क्षत-विक्षत किया गया है. किसी प्रतिमा का मुंह गायब है तो किसी का हाथ नहीं है. देखकर लगता है कि मुगलों ने आक्रमण के समय इन प्रतिमाओं को नष्ट करने की पूरी कोशिश की होगी.

मुगलों ने आक्रमण के दौरान मंदिर के बाहर की प्रतिमाओं को नष्ट करने की कोशिश की.
सूर्य की पहली किरण करती है शिवलिंग का अभिषेक
मंदिर का मुख्य द्वार इस तरह से बना हुआ है कि सूर्य की पहली किरण महादेव का अभिषेक करती है. यहां हर महाशिवरात्रि पर 5 दिन का मेला लगता है. मुख्य मंदिर मध्य में बनाया गया है. इसके तीन प्रवेश द्वार हैं. गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित हैं, जिस पर सिर्फ शिवरात्रि के दिन ही उगते हुए सूरज की किरणें पड़ती हैं. दरअसल, शिवलिंग पर पीतल का आवरण चढ़ा हुआ है, जो केवल शिवरात्रि पर ही उतारा जाता है. शिवलिंग की गोलाई 5.1 फुट और जमीन से ऊंचाई 6.7 फुट है. वहीं, जिलेहरी से ऊपर शिवलिंग की लंबाई 3.3 फुट और चौकोर जिलेहरी 22.4 फुट की है. मंदिर में गणेश जी, भगवान नटराज, महिषासुर मर्दिनी, कार्तिकेय भगवान की मूर्तियां भी हैं. इनके अलावा स्त्री सौंदर्य को प्रदर्शित करती मूर्तियां भी हैं.
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FIRST PUBLISHED : February 21, 2024, 19:19 IST