प्रशांत कुमार/बुलंदशहर: सिकंदराबाद नगर में प्राचीन किशन तालाब मंदिर रामायण और महाभारत काल का साक्षी है. जहां रावण के वध के बाद उसकी रानी मंदोदरी ने चार दिन तक तपस्या की थी. वहीं यहां महाभारत कालीन श्री कृष्ण का दरबार भी तालाब में स्थित है. दिल्ली से 60 किमी. दूर स्थित सिकंदराबाद नगर के मोहल्ला रामबाड़ा में स्थित प्राचीन किशन तालाब मंदिर रामायण कालीन है. जहां दूर दराज से लोग दर्शन करने पहुंचते हैं.
करीब 93 बीघा भूमि बने मंदिर में महादेव की सफेद पत्थर से बनी पंचमुखी मूर्ति प्राचीन कालीन है. तालाब के बीचों बीच श्रीकृष्ण दरबार भी लोगों की आस्था का केन्द्र है. प्राचीन मंदिर से कई तरह की कहानियां और किवदंतियां जुड़ी है. धर्म के प्रतीक भगवान श्रीराम और तीनों लोक का खुद को विजेता मान चुके लंकापति रावण के बीच युद्ध हुआ था. जिसमें श्रीराम ने रावण का वध कर दिया था, लेकिन रावण को ब्रह्मा जी द्वारा अमृतत्व प्रदान होने के कारण उसकी रानी को विश्वास नहीं हुआ. जिसके बाद वह रावण के शव को लेकर यहां पहुंची थी. चार दिन तक रावण की मूर्छा टूटने के लिए तपस्या की थी.
चार दिन बाद होता है रावण के पुतले का दहन
रावण के अंतिम संस्कार के बाद ही सिकंदराबाद में दशहरे के चार दिन बाद उसके पुतले का दहन होता है. बराही माता का भव्य मेला मंदिर परिसर के पास लगता है. जिसमें नगर नहीं बल्कि देहात व आसपास के लोग पूजा करने उमड़ते हैं. यही नहीं शीतला माता की पूजा और छठ पर्व पर मंदिर में मेला लगता है.
चमत्कारिक कुंड में स्नान करने से चर्मरोग दूर होने की है मान्यता
किशन तालाब मंदिर के पुजारी अंकित मिश्रा ने बताया कि किशन तालाब की काफी महिमा है. जो कुष्ठ रोगी होते हैं वह यहां स्नान के लिए आते हैं और उनके रोग खत्म हो जाते हैं. वही यहां देवी मां का मेला लगता है. मेले के बाद यहां से लोग तालाब की मिट्टी ले जाते हैं और इस मिट्टी की पूजा की जाती है. बताया जाता है कि जब रावण की मृत्यु हुई थी, तो उनकी धर्मपत्नी मंदोदरी ने चार दिन रावण के शव को रखकर पूजा अर्चना की थी, लेकिन रावण ठीक नही हुआ. यहां रावण के पुतले को दशहरा के दिन नहीं बल्कि चार दिन बाद दहन किया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : February 16, 2024, 14:30 IST
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