इस मंदिर में रखा जाता है भक्तों की हर अर्जी का हिसाब, भर चुकी हैं 72 किताबें!

भरत तिवारी/ जबलपुर: समस्त देवों में प्रथम पूज्य मंगल मूर्ति श्री गणेश एक मात्र ऐसे देवता हैं जिनके यहां मनुष्यों के अलावा देवता भी अर्जी लगाते हैं. भगवान अपने भक्तों की समय-समय पर परीक्षा लेते रहते हैं लेकिन कई पौराणिक और ऐतिहासिक घटनाएं ऐसी भी हैं जब भगवान को भी अपने भक्तों के लिए परीक्षा देनी पड़ी थी. कुछ ऐसी ही कहानी है जबलपुर के श्री सिद्ध गणेश मंदिर की जिन्हें अर्जी वाले गणेश जी के नाम से भी जाना जाता है जहां पर एक भक्त की लाज रखने श्री गणेश को भी परीक्षा देनी पड़ गई.

जबलपुर के ग्वारीघाट रोड पर स्थित श्री सिद्ध गणेश मंदिर अर्जी वाले गणेश जी के नाम से जाना जाता है. खास बात तो यह है कि इस मंदिर में भक्तों द्वारा लिखवाई गई हर अर्जी का बाकायदा हिसाब भी रखा जाता है. साथ ही हर अर्जी को एक रजिस्ट्रेशन नंबर भी दिया गया है. यूं तो भारत के हर मंदिर में भक्त मनोकामना मांगते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण भी होती हैं लेकिन जबलपुर के इस मंदिर में भक्तों द्वारा की गई मनोकामना का बराबर हिसाब रखा जाता है.

श्री सिद्ध गणेश मंदिर के संस्थापक एवं पुजारी स्वामी राम बहादुर ने बताया कि अब तक भक्तों की अर्जी से 72 किताबें भर चुकी है जिसमें लगभग 120000 हजार 505 भक्तों की अर्जी लिखी हुई है और इनमें से अधिकांश भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण भी हुई है. जिन भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है उनकी अर्जी स्वीकार ली जाती है उन भक्तों की भी अलग से रजिस्टर में एंट्री की जाती है जिनकी संख्या भी लगभग 40 रजिस्टर तक पहुंच चुकी है यह इस मंदिर की परंपरा है जो सालों से चली आ रही है.

क्या है श्री सिद्ध गणेश मंदिर की कहानी.
स्वामी राम बहादुर के मुताबिक 26 नवंबर 2001 को श्री सिद्ध गणेश मंदिर का शिलान्यास किया गया था. जिसमें खास बात यह है कि मंदिर का निर्माण जिस इंजीनियर द्वारा करवाया गया था उसका नाम मोहम्मद यूनुस रदा था जिनकी देखरेख में ही मंदिर का निर्माण संपन्न कराया गया. मंदिर के निर्माण हेतु जब जमीन की खुदाई की गई तो 4 फीट खुदाई करने के बाद ही लगभग ढाई फीट की श्री गणेश की प्रतिमा वहां पर पाई गई और मंदिर के निर्माण के पूर्वी ही श्री गणेश वहां पर स्थापित हो गए.

श्री गणेश ने वहां विराजित होते ही वहां अपने भक्तों की परीक्षा लेना भी शुरू कर दिया और निर्माण के दौरान ही श्री सिद्ध गणेश मंदिर परिसर से ही रेलवे लाइन डाले जाने और वहां सरकार की ग्वारीघाट रेलवे स्टेशन बनाने की योजना सामने आ गई जिसमें जिला प्रशासन द्वारा भूमि अधिग्रहण हेतु समाचार पत्रों के माध्यम से सार्वजनिक विज्ञप्ति भी प्रसारित की गई तथा श्री सिद्ध गणेश मंदिर को नोटिस भी जारी किया गया कि इस मंदिर को वहां से हटा लिया जाए यह भूमि रेलवे स्टेशन निर्माण हेतु आरक्षित की गई है.

कई सारे प्रयासों के बावजूद उस जगह पर मंदिर बना पाना मुश्किल लग रहा था. जिला प्रशासन द्वारा ग्वारीघाट रेलवे स्टेशन के लिए उस जगह पर मार्किंग कर दी गई थी और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अगले दिन ही यहां पर बुलडोजर चला दिया जाएगा. अगर आप सत्य की राह पर चल रहे हैं तो आपको सत्य की राह में हर कदम पर आलोचना सहनी पड़ सकती है. ऐसा ही कुछ हुआ स्वामी राम बहादुर के साथ जिन्होंने श्री सिद्ध गणेश मंदिर का बोर्ड तो मंदिर के बाहर लगा दिया लेकिन लोगों की तरफ से ऐसे कटु शब्द सुनने मिले जिसमें कहा गया की “कैसे सिद्ध गणेश है जो खुद का मंदिर ही नहीं बनवा पा रहे” और तब वह वक्त आया जब भगवान को अपने भक्त के लिए परीक्षा देनी पड़ गई और तब स्वामी राम बहादुर ने मंदिर में पहली अर्जी स्वयं मंदिर को बचाने के लिए ही लगाई और तब श्री गणेश ने उनकी अर्जी और उनकी भक्ति को स्वीकारा और रेलवे लाइन जो मंदिर से होते हुए निकलने वाली थी वह मंदिर से करीब 1 KM पीछे से निकली और तब से लेकर अर्जी वाले श्री सिद्ध गणेश के नाम से यह मंदिर जाना जाने लगा.

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