अभिलाष मिश्रा/ इंदौर. इंदौर में चौंसठ योगिनी मरीमाता मंदिर को सिद्धपीठ माना जाता है. सन् 1924 में मंदिर की स्थापना बाबूराम तुकाराम ने की थी. जहां माता के तीन स्वरुपों के साथ 64 योगिनियां भी गर्भ गृह में विराजमान हैं. जिनकी आराधना का विशेष महत्व माना जाता है. यह मंदिर इंदौर में राजकुमार ब्रिज के पास मौजूद है. मरीमाता माता काली का स्वरूप मानी जाती हैं जो विभिन्न समाजों की कुलदेवी भी मानी जाती हैं. यहां भूरा कद्दू मातारानी को अर्पित किया जाता है. मंदिर में देशभर से संतान की कामना से श्रद्धालु आते हैं.
पुजारी राजेंद्र आवाले ने बताया कि माता की सेवा तीसरी पीढ़ी कर रही है. यह मंदिर रेलवे लाइन से लगा हुआ है, जिसके कारण सदैव से इसे हटाने की बातें होती रहीं, लेकिन कभी कोई इसे हटा नहीं सका. मंदिर में माता के तीन स्वरूप महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती एक साथ विराजमान हैं. यह मंदिर इसलिए भी काफी सिद्ध और विशेष है, क्योंकि इस मंदिर में माता के साथ उनकी 64 योगिनीया विराजमान हैं.
64 योगिनियों की इसलिए की जाती है पूजा
नवरात्रि के दिनों में सभी 64 योगिनियां चैतन्य अवस्था में रहती हैं. सभी योगिनियों को मां काली का अवतार माना जाता है और इस सभी को आदिशक्ति भी कहा जाता है. मां काली ने घोर नामक दैत्य का वध करने के लिए इन्हीं सभी रुपों में अवतार लिए थे. इसके अलावा यह भी माना जाता है कि ये सभी योगिनियां माता पार्वती की सखियां हैं.
100 वर्षों से जल रही है अखंड ज्योति
मरीमाता मंदिर में बीते सौ साल से अखंड ज्योति प्रज्वलित है. हर अमावस्या एवं पूनम के दिन मातारानी को सिंदूर, घी से चोला चढ़ाया जाता है. कई बार चमेली के तेल के मिश्रण से भी चोला चढ़ता है. पुजारी राजेंद्र के अनुसार मातारानी श्मशान वासिनी हैं. मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है. मातारानी का पवित्र नदियों के जल से जलाभिषेक के बाद श्रृंगार किया जाता है. इसके बाद चुनरी ओढ़ाई जाती है.मातारानी को सुबह व शाम भक्तों द्वारा लाया गया भोग लगाया जाता है. जिन लोगों को अपनी कुलदेवी का भान नहीं होता वे 64 योगिनी मरीमाता को अपना आराध्य मानते हैं. मुख्य पुजारी ने बताया कि होलकर राजपरिवार की 64 योगिनी मरीमाता के प्रति अगाध श्रद्धा थी. यहां मातारानी का सिंह वाहिनी का सिंह उनकी तरफ मुख करके बैठा हुआ है.
संतान की कामना से आते हैं देशभर से श्रद्धालु
बताया गया कि मातारानी का स्थल सिद्धपीठ है. यहां देशभर से संतान की कामना से श्रद्धालु आते हैं. यहां उनकी गोद भराई होती है. प्रमुख दिन मरीमाता का पावन दिन मंगलवार होता है. उस दिन माता को हरे नींबू की माला पहनाते हैं. मान्यता है कि मां के दर्शन मात्र से हर तरह की वाधाएं समाप्त हो जाती हैं. मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि यहां कई बार नाग देवता भी देखें जाते हैं.आषाढ माह में यहां से पालकी यात्रा निकाली जाती है, जो मालवा मिल, राणीसती, बंबई की चाल होते हुए मंदिर पर आकर समाप्त होती है. उस समय दही चावल, मैथी आदि के साथ पूरनपोली का भोग लगाते हैं.
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FIRST PUBLISHED : October 18, 2023, 16:50 IST