इस मंदिर में आने से होती है मनोकामनाएं पूरी, युधिष्ठिर को भी मिला था वरदान

दीपक पाण्डेय/खरगोन: मध्य प्रदेश के खरगोन में जयंती माता का अति प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर महाभारत के भी पहले का बताया जाता है. पांडव और कौरव के बीच हुए युद्ध में युधिष्ठिर को जयंती माता ने ही विजय का वरदान दिया था. यहां पर हर साल सभी नवरात्रि मनाई जाती है. ये मंदिर सैकड़ों भक्तों की आस्था का केंद्र है.

बता दें कि जिले के बड़वाह से महज 4 किमी दूर चोरल नदी के किनारे विंध्याचल पर्वत के घने जंगल में माता का मंदिर स्थित है. गुप्त नवरात्रि में यहां बसंत पंचमी और सप्तमी के दिन खास आयोजन होते हैं. नवमी के दिन होने वाले भंडारे में हजारों भक्त दूर-दूर से माता के दर्शन और प्रसाद ग्रहण करने आते हैं.

मंदिर में स्वयंभू है माता भगवती
मंदिर के पुजारी एवं व्यवस्थापक रामस्वरूप शर्मा ने बताया की माता स्वयंभू है. इस मंदिर में स्थापित माता भगवती का वर्णन महाभारत और मार्कण्डेय पुराण में मिलता है. महाभारत के अनुसार, इन्हें पांडवों की कुलदेवी बताई गई हैं. युधिष्ठिर ने यहां मां भगवती का पूजन अर्चन किया था, जिससे माता प्रकट हुई और विजय का वरदान दिया.

भक्तों को नहीं मिलती है निराशा

दूर-दूर से भक्त माता के दर्शन के लिए आते है. मनोकामनाओं के लिए मंदिर की जाली में भक्त धागा  बांधते हैं और स्वास्तिक बनाते हैं. मन्नत पूरी होने पर वापस मंदिर आते है. इंदौर से दर्शन करने परिवार के साथ आएं भक्त धर्मेश चौहान ने कहा कि गुप्त नवरात्रि में खासकर माता के दर्शन के लिए आते है. माता से मांगी हुई हर मनोकामना पूरी होती है.

तीन रूपों में होते हैं दर्शन
भक्तों की मानें तो माता यहां सुबह, दोपहर और शाम तीन रूपों में दर्शन देती हैं. माता का चेहरा जिह्वा (जीभ) की तरह नजर आता है. पत्थरों की गुफा में गर्भगृह बना है. यहां माता की प्रतिमा मध्य की जगह किनारे स्थापित है.

नवरात्रि में सजेगा फूल बंगला
पुजारी ने बताया की बसंत पंचमी सरस्वती पूजन के दिन माता का विशेष श्रृंगार एवं चोला चढ़ाया जाता है. सप्तमी के दिन (नर्मदा जयंती) फूल बंगला सजेगा. इसमें लाइटिंग की जगह मंदिर और गर्भगृह को फूलों से सजाया जाएगा. अष्टमी के दिन पूजन, भावनात्मक पाठ, 56 भोग लगेगा और फिर भंडारे का आयोजन होगा.

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