अरशद खान/ देहरादून:पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड ने देश को कई बहादुर सैनिक दिए हैं, लेकिन इसकी प्रेरणा उत्तराखंड वासियों को कहां से मिलती है, क्या आप यह जानते हैं. जी हां, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उत्तराखंड के चंबा के एक छोटे से गांव मंज्यूण के रहने वाले गब्बर सिंह नेगी को जर्मनी की सेना के खिलाफ लड़ने का मौका मिला. उत्तराखंड के इस वीर सपूत ने जर्मनी के 350 सैनिक और अधिकारियों को अकेले ही युद्ध में बंदी बना लिया था. इस युद्ध में बहादुरी से लड़ते हुए सिर्फ 20 साल की उम्र में चंबा के गब्बर सिंह नेगी वीरगति को प्राप्त हुए और तभी से उत्तराखंड वासियों को उनकी वीरता के किस्से सुनने को मिल रहे हैं. यह वही किस्से हैं, जिनको सुनकर उत्तराखंड के जवान देश सेवा के लिए प्रेरित होते हैं.
Local 18 से बातचीत में गब्बर सिंह नेगी की प्रपौत्री अंजू नेगी कहती हैं कि वह अपने बचपन से ही अपने परदादा के किस्से कहानियां सुनती आई हैं. उनके नाम पर गांव में वह एक स्कूल भी चलाती हैं और उन्हीं के नाम पर अब उनके गांव का नाम भी जाना जाता है. चंबा का यह छोटा सा मंजूर गांव शहीद गब्बर सिंह नेगी की जन्मस्थली है और चंबा बाजार में उनको श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए सेना के द्वारा एक मेमोरियल भी बनाया गया है. वह कहती हैं कि हर साल मेमोरियल पर सेना के जवान उनको श्रद्धांजलि देने आते हैं. वहीं गांव में उनकी जयंती पर वीरता मेले का आयोजन भी किया जाता है.
मरणोपरांत किया विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित
गब्बर सिंह नेगी की बहादुरी को देखकर अंग्रेज भी दंग थे. उन्हें मरणोपरांत ब्रिटेन के सर्वोच्च सैनिक सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया. उनका एक मेमोरियल लंदन में भी बनाया गया है, जहां पर उनके जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है. उनकी बहादुरी की वजह से ही युद्ध में ब्रिटिश सी को बढ़त मिली थी. गांव में उनके जन्मदिवस पर एक मेले का आयोजन भी होता है, जिसमें उनकी वीरता के किस्से लोगों को सुनाए जाते हैं. यह परंपरा 1925 से लगातार चली आ रही है.
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FIRST PUBLISHED : February 22, 2024, 13:10 IST