इस चक्की में होता था सेहत का राज, कभी हर घर की होती थी शान, जानें इसकी खासियत

आदित्य आनंद/गोड्डा.इस आधुनिक दौर में जहां हर चीज आधुनिक हो रहा है. गांव से लेकर शहर तक बिजली पहुंच चुकी है. ऐसे में गेहूं, दाल, पीसने के लिए भी बिजली से चलने वाले आटा चक्की मशीन का उपयोग किया जाता है. वहीं आज भी गोड्डा में जाता चक्की का क्रेज है. गोड्डा मेले में जाता चक्की और सिलबट्टे का एक विशेष बाजार सजा हुआ है जहां इसे खरीदने भी दूर-दूर से लोग पहुंच रहे है. यह जाता चक्की गोड्डा के पहाड़ी क्षेत्रों में बनता है.यहां राजस्थान के पत्थरों का बना हुआ जाता चक्की भी आया हुआ है, जो लोगो को अधिक पसंद आ रहा हैं.

आटा चक्की बेचने वाले देवेंद्र कुमार ने कहा कि तीन प्रकार की आटा चक्की इस बार उनके पास मौजूद है. जिसमें, दो अलग-अलग प्रकार की जाता चक्की राजस्थान से मंगाई गई है. बाकी जो एक प्रकार की जाता चक्की है, वह गोड्डा में ही तैयार की जाती है. यहां सबसे कम कीमत का जाता चक्की 800 रुपए से शुरू है और अधिकतम 1500 रुपए तक का जाता चक्की मौजूद है. वहीं, राजस्थानी पत्थरों की बनी जाता चक्की में खूबी यह है कि इसमें जल्दी से कोई भी अनाज पीस जाता है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट
आयुर्वेदिक डॉक्टर नवीन कुमार भारती ने कहा कि जाता चक्की पुराने जमाने में हर एक घर में पाया जाता था. अब लोग बिजली की चक्की उपयोग करते हैं. पहले घर की महिलाएं जाता चक्की चलती थी जिससे रोज उनका एक प्रकार का व्यायाम होता था. जाता चक्की से पिसा हुआ अनाज भी अधिक पौष्टिक होता था. लेकिन, बिजली के चक्की में पिसे हुए अनाज में घर्षण अधिक होने से अनाज के कई फाइबर नष्ट हो जाते हैं. बिजली चक्की का पिसा हुआ आटा भी अधिक फायदेमंद नहीं होता है. वहीं, गोड्डा के पंडित सतीश झा ने बताया कि भले ही आधुनिक युग में हर जगह लोग बिजली वाला चक्की इस्तेमाल करते है. लेकिन, आज भी शादियों में कई ऐसे नियम होते हैं जिसमें जाता चक्की का इस्तेमाल जरूरी होता है. जैसे शादियों में उटकन भुनाने के समय जाता चक्की में ही डाल को दरा जाता है.

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