इस गांव में है 150 साल पुराना उर्दू भाषी महापुराण,यहां दूर-दूर से आते हैं लोग

अर्पित बड़कुल, दमोह: यदि आप भी पुराने ग्रंथो को पढ़ने का शौक रखते हैं,जो समाज को नई दिशा प्रदान करें तो एक बार मध्यप्रदेश के दमोह जिले के पथरिया के रहने वाले 75 वर्षीय राजेंद्र ठाकुर से जरूर मिलिए. इनके पास आपको सालों पुरानी किताबे और ग्रंथ आसानी से मिल जाएंगे. इन्हीं में से एक करीब 100 से 150 साल पुराना महापुराण इनके पास मौजूद हैं. जिसमें, लिखें कुछ कुछ शब्दों उर्दू भाषी हैं.

दरसल राजेंद्र ठाकुर ग्यारहवीं फैल हैं. इसके बावजूद उनके शास्त्रों का बेहद बारीकी ज्ञान विधमान हैं. राजेंद्र ठाकुर ने कहा कि बच्चों में संस्कार उनके माता पिता से आते हैं. बस ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ जब मैं कक्षा 11वीं में फैल हुआ तो लोगो ने मेरे पिता जी कहा कि अब उससे खेतीबाड़ी करवाओं. इसलिए मैं छोटी उम्र में ही खेतीबाड़ी की जबाबदारी अपने कंधों पर ले लिया था. लेकिन, बदलते समय के साथ मुझे जितना खेतीबाड़ी से लगावा हुआ था, उससे कहीं ज्यादा शास्त्रों,ग्रन्थों को पढ़ने और उनका संग्रह करने की रूचि थी. दादा परदादा के समय के महापुराणो से लेकर करीब 100 से 250 साल पुराने ग्रन्थों का कलेक्शन करना शुरू कर दिया. मेरी इस अलवारी मे धार्मिक किताबें, वेद पुराण उपनिषद का संग्रह है, जिसे वह प्रत्येक शुक्रवार को खेरमाई के चबूतरे पर बैठकर लोगों के दिलों में धर्म की आस्था को जगाने का काम करते हैं. इसके साथ ही उनके यहां दूसरे व्यक्ति भी जाकर इनका अध्ययन कर सकते हैं.

राजा महाराजाओं के दौर की लेखनी होती हैं द्वर्थिय
राजेन्द्र ठाकुर ने कहा कि जब राजा महाराजाओं का शासन काल था. तब के जितने भी ग्रंथ, धार्मिक किताबें, वेद, पुराण,पत्र पत्रिकाएं हुआ करती थे. उन्हें द्विभाषीय शब्दों में लिखा जाता था. ताकि हर कोई  उसका अध्ययन कर सके. ऐसे ही ये सुखसागर बारहोस्कंध महापुराण हैं, जिसे लखनऊ हजरतगन्न श्री मुंशी नवलकिशोर के छापेखाने में 25 अक्टूबर 1883 ई.में छापा था. जिसे उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी एक लंबे समय से संभालती आ रहे हैं. ये महापुराण मेरे बब्बा ने पिता जी को और पिता जी ने मुझे दिया था.

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