इस गांव पर मां की विशेष कृपा, हैजा से दिलाया था गांव को छुटकारा, नवरात्र में विदेश से भी आते हैं भक्त

गौरव सिंह/भोजपुर: नवरात्र के आगमन के साथ ही, लोग पूजा-पाठ करने के लिए प्रसिद्ध मंदिरों की ओर मोड़ लेते हैं. इसी तरह के एक प्रसिद्ध मंदिर है बखोरापुर मां काली का, जो आरा रेलवे स्टेशन से लगभग 12 किलोमीटर उत्तर की ओर स्थित है. बखोरापुर गांव के बखोरापुर मां काली मंदिर में वाहन चालकों की खास आस्था है, और नवरात्र में यहां पूजा प्रबंधन की ओर से श्रद्धालु भक्तों के लिए हर दिन प्रसाद वितरण का आयोजन किया जाता है. नवरात्र के दौरान, देश के विभिन्न कोनों से लाखों श्रद्धालु यहां आकर मां के पावन दर्शन करते हैं, और इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक अनोखी कहानी छिपी है.

विदेशों से भी भक्त पूजा करने आते हैं यहां
मंदिर के महंत, विष्णु उपाध्याय, बताते हैं कि बखोरापुर की मां काली एक ग्रामीण देवी है, और पूजा-पाठ इसके प्राचीन समय से चल रहा है. मंदिर के निर्माण के बाद से, गांव के लोग दूर-दूर से, और कुछ तो विदेशों से भी यहां भक्ति और पूजा के लिए आते हैं. लोग मानते हैं कि वो मां से जो भी मन्नत मांगते हैं, वो मांग पूरी हो जाती है. मंदिर से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है, जिसके कारण यह मंदिर देश के अलावा विदेशों में भी प्रसिद्ध है. यहां नियमित रूप से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है, जिसमें भोजपुरी सहित सिने जगत के अनेक विश्व प्रसिद्ध कलाकार अपनी प्रस्तुति देते हैं.

मंदिर की कई तरह की हैं कहानियां, उसी में एक ये भी
स्थानीय लोगों के अनुसार 1862 के समय में रापुर गांव में हैजा फैला था. जिसमें करीब 500 से अधिक लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग बीमार थे. उसी समय गांव में एक साधु का प्रवेश हुआ था. उन साधु ने मां काली की पिंडी स्थापना करने की बात कही. साथ ही, ये भी बताया कि ऐसा करने से यहां से यह बीमारी समाप्त हो जाएगी. साधु के कहने पर गांव के बड़े-बुजुर्गों ने नीम के पेड़ के पीछे मां काली की नौ पिंडी स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी. इसके बाद, वो साधु चंद दिनों बाद अदृश्य हो गए. साथ ही, हैजा भी गांव से धीरे-धीरे समाप्त हो गया. लेकिन, जिस स्थान पर पिंडी स्थापना की गई थी, उसके बगल से नाला बहता था. कुछ दिनों बाद एक आकाशवाणी हुई. जिसमें यह सुनने को मिला कि मां की जो पिंडी है, उसे उस नाले के पास से हटाया जाए, नहीं तो मां इस गांव से चली जाएगी. लोगों का कहना है कि वो आकाशवाणी मां कारनी के द्वारा ही की गई थी. इसके बाद ग्रामीणों ने मां की पिंडी को वहां से दूसरे स्थान पर ले जाकर स्थापित किया.

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