इस इलाके में चमगादड़ों की होती है पूजा…इनके आने से दूर हो गई थी महामारी

राजकुमार सिंह/वैशाली. चमगादड़ अब आमतौर पर लोगों को देखने को नहीं मिलते हैं. लेकिन वैशाली जिले के सरसई गांव में आते ही आपको पक्षियों के बराबर ही चमगादड़ दिखाई देंगे. लोगों की मान्यता है कि 600 वर्ष से अधिक समय से इस गांव में चमगादों का बसेरा है. यहां के लोग चमगादड़ को शुभ मानकर उनकी पूजा व सेवा भी करते हैं. यहां के 52 बीघा तालाब के पास आते ही आपको चमगादड़ों का झुंड दिखाई देने लगेगा. पेड़ों पर उल्टा झूल रहे चमगादड़ों को देख आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि आखिर यहां इतनी बड़ी संख्या में चमगादड़ क्यों और कहां से आए.

नागपंचमी के दिन करते हैं पूजा

हम बात कर रहे हैं वैशाली जिले के हाजीपुर प्रखंड क्षेत्र के सरसई गांव की, जहां स्थित एक तालाब के चारों तरफ जितने भी पेड़ हैं, सभी पर सैकड़ों की संख्या में चमगादड़ों का बसेरा है. गांव वाले बताते हैं कि कई पीढ़ी के लोग इस गांव में चमगादड़ देखते आ रहे हैं.

ग्रामीणों ने बताया कि आज तक चमगादड़ों ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है. यही वजह है कि नागपंचमी के दिन गांव में चमगादड़ की पूजा भी की जाती है. लोगों की माने तो इस गांव मेंपेड़ पर रहकर उल्टा लटककर सोने वाने प्रजाति का चमगादड़ है. इसे देखने दूर-दूर से लोग आते हैं. उनके लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है.

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छह सौ साल से गांव में चमगादड़ों का बसेरा

सरसई गांव के रहने वाले अमोद कुमार निराला बताते हैं कि यह इलाका चमगादड़ों के लिए बहुत खास है. वे बताते हैं कि वर्ष 1402 से 1405 के बीच ठाकुरी राजवंश के राजा शिव सिंह ने सरसई गांव में 52 बीघा जमीन पर तालाब खुदवाया था. इसके चारों ओर पेड़ लगवाए थे. वे बताते हैं कि गांव में हैजा और कोलरा जैसी महामारी अक्सर फैल जाती थी.

ऐसी किंवदंती है कि एक बार जब सरसई और आसपास के गांवों में महामारी फैली, तो उन दिनों चमगादड़ों का झुंड आया और तालाब के चारों ओर स्थित पेड़ों पर डेरा बसा लिया. उसके बाद इस इलाके में महामारी फैलना बंद हो गया. यही कारण है कि पीढ़ियों से यहां के लोग चमगादड़ को रक्षक मानकर उनकी पूजा करते हैं. स्तनधारी जीव होने के चलते इसे मातृत्व का रूप माना जाता है. जबकि, रात में उड़ने के चलते लोग इसे माता लक्ष्मी का अंश भी मानते हैं.

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