03

“मैं जिसके साथ कई दिन गुज़ार आया हूं, वो मेरे साथ बसर रात क्यूं नहीं करता…” तहज़ीब हाफ़ी की शायरी भावनाओं के धागों से एक ऐसा वस्त्र तैयार करती है, जिसमें सारे भाव एक साथ उधड़ते चले जाते हैं. इनके शेरों में दर्द है, आवेग है, उम्मीद है और गहराई भी…