बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुश सोशल मीडिया के जरिये इसकी जानकारी दी. उन्हेंने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी हमारे समय के सबसे सम्मानित नेताओं में एक हैं. बता दें कि ये सर्वोच्च सम्मान भारतीय नागरिकों को देश सेवा में उनके विशिष्ट योगदान के लिए दिया जाता है. हालांकि, कुछ मौकों पर विदेशी नागरिकों को भी भारत रत्न से नवाजा गया है. इनमें नेल्सन मंडेला और मदर टेरेसा का नाम शामिल है. यही नहीं, पाकिस्तान के नागरिक ‘बादशाह खान’ को भी भारत रत्न से नवाजा जा चुका है. जानते हैं कि बादशाह खान कौन थे और उन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान क्यों दिया गया?
बंटवारे ने बहुतों के घर उजाड़ दिए थे. वहीं, देश के दो टुकड़ों ने एक देशभक्त का दिल ऐसा तोड़ा, जो उसे कभी खत्म ना होने वाला दर्द दे गया. यह शख्स खान अब्दुल गफ्फार खान थे, जिन्हें लोग बादशाह खान के नाम से भी पहचानते थे. वह भारत की आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी के रास्ते पर चलकर देश की सेवा कर रहे थे. आजादी के समय तक सीमांत गांधी के नाम से पहचाने जाने लगे खान अब्दुल गफ्फार खान को सबसे ज्यादा तकलीफ इस बात की थी कि उनकी कर्मभूमि पाकिस्तान में चली गई थी. बता दें कि भारत रत्न से सम्मानित अब्दुल गफ्फार खान का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत के पेशावर के पास एक सुन्नी मुस्लिम परिवार में 6 फरवरी 1890 को हुआ था.
खान साहब पहली बार 6 महीने के लिए गए थे जेल
बादशाह खान के पिता बैराम खान शांत स्वभाव वाले व्यक्ति थे. उन्हें राजनीतिक जुझारूपन परदादा अब्दुल्ला खान से मिला था. उन्होंने भारत की आजादी के लिए कई लड़ाइयां लड़ी थीं. अब्दुल गफ्फार खान के पिता ने उन्हें मिशनरी स्कूल में भर्ती कराया तो उन्हें विरोध झेलना पड़ा. फिर उन्होंने अलीगढ़ से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की. जब पेशावर में 1919 में मार्शल लॉ लागू किया गया तो शांति प्रस्ताव पेश करने के बाद भी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. अंग्रेज सरकार उन्हें झूठे आरोप में फंसाने की कोशिश की. फिर गवाह नहीं मिलने के बाद भी उन्हें छह महीने जेल में रखा गया था.
खान अब्दुल गफ्फार खान महात्मा गांधी के अहिंसा के रास्ते पर चलकर देश की आजादी के आंदोलन में सेवा देता रहे.
बादशाह खान कैसे पड़ा अब्दुल गफ्फार का नाम
अब्दुल गफ्फार खान ने महज 20 साल की उम्र में पेशावर के उत्मान जई में स्कूल खोला. स्कूल का चलना अंग्रेजों को रास नहीं आया तो उन्होंने 1915 में उस पर पाबंदी लगा दी. इसके बाद उन्होंने पश्तूनों में जागरूकता फैलाने का मन बना लिया. इसके लिए उन्होंने तीन साल लगातार यात्राएं कीं. इस दौरान वह सैकड़ों गांवों में लोगों से मिले. इसी वजह से उनका नाम बादशाह खान पड़ गया. बता दें कि ग्रेजुएशन के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए लंदन जाना चाहते थे, लेकिन पिता के मना करने पर समाज सेवा और आजादी के आंदोलन में कूद पड़े.
गांधी जी के करीब आए और कांग्रेस से जुड़ गए
सीमांत गांधी ने खुदाई खिदमतगार नाम से सामाजिक संगठन बनाया. ये संगठन बाद के दिनों में राजनीतिक तौर पर भी सक्रिय हुआ. बादशाह खान कहते थे कि हर खुदाई खितमतगार कसम लेता है, ‘हम खुदा के बंदे हैं, दौलत या मौत की हमें कदर नहीं है.’ उनका संगठन काफी तेजी से पूरे देश में पहचान बनाने लगा था. उनकी महात्मा गांधी से 1928 में मुलाकात हुई. इसके बाद दोनों दोस्त बन गए. अब्दुल गफ्फार खान महात्मा गांधी से इतना प्रभावित हुए कि कांग्रेस से जुड़ गए. अहिंसावादी विचारों के कारण दोनों करीब आए लाऔर फिर धर्मनिरपेक्ष, अविभाजित और स्वतंत्र भारत के लिए मिलकर काम करने का फैसला किया.
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बंटवारे का ऐलान हुआ तो विरोध में हो गए खड़े
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदानों और प्रयासों से देश आजाद हुआ. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी 1947 को भारत को आजाद करने की घोषणा कर दी. इसका जिम्मा लॉर्ड माउंटबेटन को सौंपा गया. उन्होंने कहा कि भारत के मौजूदा हालात को देखते हुए बंटवारा ही सबसे बेहतर और अकेला विकल्प है. इसमें देशी रियासतों को छूट दी गई कि वे जिस देश के साथ जाना चाहें, जा सकती हैं. ब्रिटेन की संसद ने इससे जुड़े विधेयक को 18 जुलाई 1947 को पास कर दिया. बंटवारे की बात शुरू हुई तो सीमांत गांधी इसके विरोध में खड़े हो गए. जब बात नहीं बनी तो उन्होंने पश्तूनों के लिए अलग देश की मांग रख दी. इसका असर नहीं हुआ और बंटवारे के बाद वह पाकिस्तान में घर होने के कारण वहीं रहने लगे.
पाकिस्तान में रहते हुए बादशाह खान पश्तून अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे.
पाकिस्तान की सरकार को बताया था भेडिया राज
बंटवारे बाद सीमांत गांधी ने खुलेआम कहा कि आजादी के समय उन्हें भेड़ियों के समाने डाल दिया गया. साथ ही कहा कि उन्हें भारत से जो भी उम्मीदें थी, उनमें एक भी पूरी नहीं हुई. बंटवारे ने उन्हें तोड़कर रख दिया, लेकिन पाकिस्तान में रहते हुए वह पश्तून अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे. वे पाकिस्तान के विरुद्ध स्वतंत्र पश्तूनिस्तान आंदोलन चलाते रहे. इस वजह से पाकिस्तान ने उन्हें देशद्रोही करार देते हुए कई साल जेल में रखा. फिर वह अफगानिस्तान चले गए. इसके बाद फिर कुछ साल भारत में रहने के बाद वापस पाकिस्तान चले गए. नजरबंदी के दौरान 20 जनवरी 1988 को उनका पेशावर में निधन हो गया.
भारत रत्न से नवाजे गए पहले गैर-भारतीय बने
भारत सरकार ने 1987 में खान अब्दुल गफ्फार खान को सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से नवाजा. वह यह सम्मान पाने वाले पहले गैर-भारतीय बन गए. जिंदगी भर अहिंसा का पालन करने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान की अंतिम यात्रा हिंसा का शिकार हुई. जब उनका जनाजा निकल रहा था तो दो धमाके हुए, जिनमें 15 लोगों की मौत हुई. उनके जीवन में उनका संगठन खुदाई खिदमतगार भी एक बार भीषण हिंसा का शिकार हुआ था. दरअसल, नमक सत्याग्रह के दौरान अब्दुल गफ्फार खान को गिरफ्तार कर लिया गया था. इसके विरोध में खुदाई खिदमतगारों के दल ने प्रदर्शन किया. अंग्रेजों ने इन निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलवा दीं, जिसमें 200 से ज्यादा लोग मारे गए थे.
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FIRST PUBLISHED : February 3, 2024, 16:02 IST