इंडिया गठबन्धन लगातार कमजोर होता हुआ दिखाई दे रहा है जबकि केंद्र की सत्ता पर काबिज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन-एनडीए में नये दलों के जुड़ने की खबरों से उसके बड़े लक्ष्य के साथ जीत की राह आसान होती जा रही है। लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के साथ 400 सीटें जीतने का लक्ष्य निश्चित किया है। भाजपा जहां इस बडे़ लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पुराने सहयोगियों को फिर से साध रही है तो दूसरे दलों के नेताओं को अपने पाले में करने पर भी पार्टी का जोर है और वह इसमें बड़ी सफलताओं को प्राप्त कर रही है। ओडिशा में बीजेडी और आंध्र में टीडीपी से गठबंधन पक्का माना जा रहा है। त्रिपुरा का मुख्य विपक्षी दल टिपरा मोथा भी अब भाजपा सरकार में शामिल हो गया है। भाजपा पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक चुनावी समीकरण सेट करने एवं विभिन्न दलों को एनडीए में शामिल करने की रणनीति में जुटी है। भाजपा ने अभी अनेक प्रांतों में अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं की है, ताकि दूसरे दलों के एनडीए में शामिल करने एवं उनसे सीटों के समीकरण को सेट करने के दरवाजे खुले रहे। निश्चित रूप से भाजपा की यह मजबूत होती स्थिति विपक्ष की एकता के लिए अच्छी खबर नहीं कही जा सकती क्योंकि इंडिया गठबन्धन विभिन्न मजबूत क्षेत्रीय दलों का ही गठबन्धन माना जाता है जिसमें कांग्रेस एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी है। समाजवादी पार्टी एवं आम आदमी पार्टी के अलावा अन्य क्षेत्रीय दलों में उतना दम नहीं है, या अनेक मजबूत दल एनडीए के साथ जुड़ चुके हैं या उन्होंने स्वतंत्र चुनाव लड़ने की घोषणा करके इंडिया गठबन्धन की सांसें छीन ली है। इन नये गठजोड़ों से बनते राजनीतिक परिदृश्य इंडिया गठबन्धन के लिये चिन्ता का कारण है।
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव ऐतिहासिक होंगे। ऐसी संभावनाएं हैं कि भाजपा शारदार एवं ऐतिहासिक जीत को सुनिश्चित करने के लक्ष्य को लेकर सक्रिय है। नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि इन चुनावों के परिणाम उनके 400 सीटों के लक्ष्य को हासिल करें। इसलिये भाजपा विभिन्न दलों को एनडीए में शामिल करने के जोड़-तोड़ में लगी है। इस चुनाव को लेकर चुनावी गठबंधनों का दौर चल रहा है। राजनीतिक दल चुनावी गठबंधनों और सीटों के बंटवारे पर चर्चा कर रहे हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन में क्षेत्रीय दलों को जोड़ा जा रहा है, तो दूसरी तरफ खड़ा है इंडिया गठबंधन। कांग्रेस के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन ने भी कुछ राज्यों में अपने सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग पर बात बना ली है। कुछ पर अब भी बात चल रही है। भाजपा ने 2 मार्च को अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी की। इस लिस्ट में 195 उम्मीदवारों के नाम थे। कुछ ऐसे राज्य बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा, हरियाणा, पंजाब और कर्नाटक हैं जहां से भाजपा ने एक भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की। इन राज्यों के एक भी सीट पर उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं करने का कारण है- भाजपा की अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन या गठबंधन के दलों के साथ सीट शेयरिंग पर अब भी चल रही बातचीत में संभावनाएं तलाशने की रणनीति।
लोकसभा चुनाव सन्निकट हैं। इंडिया गठबन्धन एवं एनडीए रूठे नेताओं को मनाने, गठबंधन का गणित सेट करने और पुराने सहयोगियों को फिर से साथ लाकर कुनबा बढ़ाने की कोशिशों में जुटे हैं। भाजपा ने इन चुनावों में ’अबकी पार, 400 पार’ का नारा दिया है। अब पार्टी इस नारे को चुनाव नतीजे में तब्दील करने के लिए व्यापक स्तर पर गठबंधनों की संभावनाओं को तलाश रही है। ओडिशा में बीजू जनता दल और भाजपा का गठबंधन पक्का माना जा रहा है। अगर ये गठबंधन होता है तो राज्य में दोनों ही दलों को बढ़िया चुनाव परिणाम मिल सकते हैं। कारण कि पिछले लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस को मात्र 1 सीट पर जीत मिली थी और वर्तमान में यहां की राजनीति पर नवीन पटनायक की मजबूत पकड़ बताई जाती है। लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में दोनों पार्टियां 11 सालों तक गठबंधन में रहीं। इस दौरान दोनों दलों का राज्य की राजनीति पर दबदबा बना रहा। पटनायक राजनीति के महारथी हैं, उनको भाजपा के साथ गठबंधन करना ही पार्टी एवं राज्य की जनता के हित में प्रतीत हो रहा है।
बीजू जनता दल की पिछले 25 वर्षों से ओडिशा में सरकार है और इसके मुख्यमन्त्री नवीन पटनायक इस पार्टी के एकछत्र नेता माने जाते हैं और इस दल का 2009 तक भाजपा से सहयोग था और यह एनडीए का हिस्सा था। 1998 में जब एनडीए का गठन हुआ था तो बीजू जनता दल स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में इसमें शामिल हुआ था। मगर 2008 में ओडिशा के कन्धमाल में भीषण साम्प्रदायिक दंगे हुए थे जिनमें भाजपा पर भी गंभीर आरोप लगे थे। उसके बाद 2009 में बीजू जनता दल लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए से बाहर आ गया था। अब पुनः 15 वर्ष बाद वर्ष 2024 के आम चुनाव में ही यह पुनः एनडीए में शामिल हो रहा है और मोदी के नेतृत्व में राज्य को विकास की नयी ऊंचाइयां देना चाहते हैं। नवीन बाबू की वरीयता राज्य शासन पर काबिज रहना है और भाजपा का लक्ष्य केन्द्र की सरकार पर आरुढ़ रहना है। दोनों पार्टियां एक-दूसरे के लक्ष्य को पूरा करने में एक-दूसरे की सहायक हो सकती हैं। अतः इससे विपक्ष का यह विमर्श भी निस्तेज पड़ता है कि श्री मोदी के सत्ता में आने के बाद से देश में भाजपा विरोध का समां बंधा है। मोदी के प्रभावी नेतृत्व का ही परिणाम है कि अनेक क्षेत्रीय दल भाजपा का समर्थन करते हुए न केवल अपनी राजनीति को जीवंत रखना चाहते हैं बल्कि नया भारत-सशक्त भारत बनाने में खुद को शामिल करना चाहते हैं।
ओडिशा की ही तर्ज पर बिहार में भी नीतीश को मोदी के नेतृत्व में हित दिखाई दिया है। यही कारण है लोकसभा चुनाव के पहले बिहार में राजनीतिक बदलाव करते हुए नीतीश एनडीए से जुड़ गये। इस बदलाव से राज्य में भाजपा और नीतीश कुमार को इस चुनाव में बड़ा फायदा होने की संभावनाएं है। राज्य में भाजपा के साथ एनडीए गठबंधन में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के अलावा इन दलों का भी साथ है- चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी- रामविलास (लोजपा रामविलास), चिराग के चाचा पशुपति पारस की लोजपा, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा। लेकिन इन दलों एवं भाजपा के बीच कई कारणों से पेंच फंसे हुए है, सीटों के बंटवारे को लेकर समझौते के तार उलझे हुए हैं, जो निकट भविष्य में सुलझ जाने की उम्मीद है।
महाराष्ट्र की 48 सीटों में से करीब 32 सीटों पर भाजपा चुनाव लड़ सकती है, वहीं एकनाथ शिंदे की शिवसेना को लगभग 12 सीट और अजित पवार की एनसीपी को लगभग 4 सीटें मिल सकती हैं। राज्य में 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए में भाजपा के साथ शिव सेना ने चुनाव लड़ा था। भाजपा ने 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 23 पर जीत हासिल की थी। वहीं शिवसेना ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा और 18 पर जीत दर्ज की। तब कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन में साथ थे। एनसीपी को 4 सीटों पर और कांग्रेस को 1 सीट पर जीत मिली थी। उधर आंध्र प्रदेश में भाजपा और तेलुगु देशम पार्टी का गठबंधन हो सकता है। 7 मार्च को टीडीपी प्रमुख और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मुलाकात के बाद गठबंधन की अटकलों को बल मिल गया है। राज्य में भाजपा, टीडीपी और जन सेना के बीच गठबंधन को लेकर बातें तय हो चुकी हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, टीडीपी भाजपा के लिए 6 सीटें छोड़ने पर सहमत हो गई है। विभिन्न गैर भाजपा राज्यों में भाजपा की स्थिति अनुकूल बनती जा रही है, जिससे उसका 400 सीटों के पार का लक्ष्य हासिल होता हुआ दिखाई दे रहा है। जबकि कांग्रेस पार्टी इंडिया गठबन्धन की उलझनों में उलझी हुई है। ये उलझने ही भाजपा की राह को आसान बना रही हैं।
-ललित गर्ग
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)