दीपक कुमार/बांका : मछली पालन कमाई का बेहतर जरिया बनकर उभरा है. बड़ी संख्या में युवा मछली पालन से जुड़कर कमाई का स्त्रोत तालाश रहे हैं. युवाओं में मछली पालन का क्रेज बढ़ने के पीछे का मुख्य कारण इसमें होने वाली कमाई. मछली पालन के जरिए किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. बांका जिला के बौंसी प्रखंड स्थित उपरामा गांव के युवा सुमन सौरभ मौर्य भी इंजीनियरिंग में करियर बनाने के बजाए मछली पालन को चुना.
सुमन पिछले कई वर्षों से मछली पालन के साथ हैचरी के जरिए बीज का भी उत्पादन करते हैं. सुमन सौरभ मौर्य ने मछली पालन के साथ बीज उत्पादन के लिए छह एकड़ में 11 तालाब खुदवाया है. वहीं 40 क्विंटल तक मछली का भी उत्पादन करते हैं. इससे सालाना लाखों में कमाई कर रहे हैं.
11 तालाब से सालाना 10 लाख से अधिक की करते हैं कमाई
सुमन सौरव मौर्य ने बताया कि बचपन से हीं खेती के प्रति लगाव रहा है. यही वजह रहा है कि इंजीनियरिंग में करियर बनाने के बजाए आधुनिक तकनीक से खेती हीं खेती या इससे जुड़ा व्यवसाय करना चाहते थे. लेकिन, आधुनिक तकनीक से खेती करने की कोई जानकारी नहीं थी. उन्होंने बताया कि बेंगलुरु में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद गांव आ गए और एक तालाब को खुदवाकर मछली पालन किया. पहली बार में 60 हजार का मुनाफा हुआ. इसके बाद 6 एकड़ में 11 तालाब खुदवाया. इसमें मछली पालने पर काफी मुनाफा हुआ.
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कृषि विज्ञान केन्द्र बांका के वैज्ञानिकों के कहने पर हैचरी भी शुरू कर दिया. हैचरी शुरू करने के लिए सरकार से 8 लाख का अनुदान भी मिला. फिलहाल मछली पालन के साथ हैचरी में बीज भी उत्पादन कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि तालाब में रेहू, कातल, मिरगन, रूपचद्र, ब्रिगेड, ग्राशकोर्फ सहित सीलन प्रजाति के मछली का पालन करते हैं. वहीं सालाना 30 से 40 क्विंटल मछली का उत्पादन करते हैं. कुल मिलाकर सालाना 10 लाख से अधिक की कमाई हो जाती है.
ऐसे तैयार होता है मछली का बीज
सुमन सौरभ मौर्य ने बताया कि मछली के बीज की हैचिंग के लिए 3 हैचिंग टैंक, 6 सिस्टर्न, 45 लीटर का शुद्ध पानी टैंक बनाया जाता है. हैचिंग टैंक पहले 45 डिग्री के एंगल पर 16 पाइप नीचे की ओर लगाया जाता है, जो पानी को घूमाने का काम करता है. इससे मछली को यह लगता है कि वह बहते हुए पानी में है और अपना प्रजनन क्रिया अंडा देती है और 3 दिन तक रखने के बाद स्पॉन बनता है. इसके बाद स्पॉन को 16 दिन तक सिस्टर्न में रखने के बाद फ्राईलिंग बन जाता है. पुनः फ्राइलिंग को छोटे-छोटे तालाब में डाला जाता है जो इयरलिंग के रूप में विकसित होता है. यह एक साल की प्रक्रिया होती है. इसके बाद ग्राहकों के पास स्पॉन, फ्राईलिंग या इयररिंग के रूप में भेज दिया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : January 29, 2024, 16:03 IST