आर्मी लैंड पर माफियाओं की नजर,हड़पी जा रही थी द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की जमीन

रांची. झारखंड की राजधानी रांची में करोड़ो की सरकारी जमीन को हड़पने के लिए एक बड़ी साजिश का खुलासा हुआ है. इस साजिश को अंजाम देने के लिए बड़े कारोबारी, राज्य सरकार के बड़े अफसर, राजस्व विभाग के भ्रष्ट कर्मी से लेकर जमीन दलाल और भू माफिया तक शामिल थे. लेकिन, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जमीन घोटाले की जांच ने सबके मंसूबों पर पानी फेरते हुए सरकार की करोड़ों रुपए की जमीन को गलत हाथों में जाने से बचा लिया. ईडी ने जमीन घोटाले की एक-एक साजिश का खुलासा कर दिया है.

ईडी ने जिन जमीनों को जब्त किया उनपर पर दावा और मुकदमा करने वाले और खुद को जमीन का मूल रैयत बताने वाले भी फर्जी निकल रहे है. ईडी द्वारा जमीन से संबंधित दस्तावेज की जांच के दौरान इसकी पुष्टि हुई है. रांची में जमीन घोटाले में जिस तरह के तथ्य अनुसंधान में सामने आये, वह काफी चौकानें वाले थे. मिली जानकारी के अनुसार सिरम टोली में सेना की साढ़े 5 एकड़ जमीन हथियाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए गए, सेना जमीन को लेकर ईडी ने जब जांच की तो कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए.

दरअसल इस जमीन को हथियाने के लिए आर एस सर्वे का सहारा लिया गया. इस जमीन में हुई गड़बड़ी  की शिकायत करने वाले शिकायतकर्ता ने बताया कि सिरम टोली स्थित सेना की जमीन को एम एस सर्वे  और आर एस सर्वे के भिन्नता का फायदा उठाकर और अधिकारियों को गठजोड़ से जमीन का हथियाने का काम किया गया. दरसल सिरम टोली स्थित सेना की कब्जे वाली जमीन का एम एस सर्वे(म्युनिसिपल सर्वे) मे प्लॉट नंबर 858 और 901 था. जबकि आर0 एस0( रिजनल सर्वे) मे इसका खाता नंबर बदल कर 269 हो गया और प्लॉट नंबर भी बदल कर 267 हो गया. 945 और 1947 मे सेना की जमीन का अधिग्रहण हो गया जिस का ब्यौरा राजस्व भू अर्जन कार्यालय में है. लेकिन, कार्यालय मे अधिग्रहण की जानकारी नहीं है,  क्योंकि राजस्व कार्यालय म्युनिसिपल सर्वे से चल रहा है. जबकि आर एस सर्वे से ये अधिग्रहण किया गया था. इसकी जानकारी  ईडी मे मामले की शिकायतकर्ता समीर सिन्हा ने दी. वहीं ईडी की जांच मे इसकी पुष्टि भी हुई है.

वहीं, उन्होंने बताया कि इस जमीन के रैयत काली पद घोष के नाम से थी और उनके बेटे जो सेना मे डॉक्टर थे. उनके द्वारा ही ये जमीन सेना को दी गई थी ताकि द्वितीय विश्वयुद्ध में घायल जवानों का इलाज हो सके. हाल की अस्पताल नहीं बन पाया. इसके एवज में उन्हें 69 हजार रूपए भी जमीन के अधिग्रहण को मिले थे. लेकिन, पैसों के लालच ने आकर संजय कुमार घोष ने और महुआ मित्रा ने अधिकारियों की मिलीभगत से रिजनल और म्युनिसिपल सर्वे का फायदा उठाकर जमीन को अपने नाम कर विष्णु अग्रवाल और उनकी पत्नी के नाम बेच दी गई. शिकायतकर्ता का आरोप है कि इसके लिए 2 करोड़ रूपए पेपर के नाम पर खर्च किए गए.

रांची के चेशायर होम जमीन मामले में ईडी ने अपनी जांच में पाया है कि बिहार सरकार ने वर्ष 1976 में भू हदबंदी कानून के तहत इस जमीन को अधिग्रहित कर लिया था. पुगडू की 9.30 एकड़ जमीन को लेकर भी कुछ इसी तरह का बड़ा खेल हुआ है. यही कारण है कि ईन तीन भूखण्ड जिसका मूल्य करीब 161.64 करोड़ रुपये है. उसे अस्थाई रूप से जब्त कर लिया था और जब्त सारी जमीनें कारोबारी विष्णु अग्रवाल से जुड़ी हुई है.

Tags: Directorate of Enforcement, Jharkhand news, Ranchi news

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *