दीपक कुमार/ बांका: बिहार में जैविक खेती का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है. रासायनिक उर्वरक को छोड़ किसान अब फसलों में जैविक खाद का प्रयोग कर रहे हैं. जैविक खाद बेहद सस्ता है और कोई भी किसान इसे खुद से तैयार कर सकता हैं. बांका जिला मुख्यालय से सटे तारापघार गांव के संतोष झा वर्मी कंपोस्ट ही बनाने का काम कर रहे हैं. संतोष ने एमएससी की पढ़ाई खत्म करने के बाद वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम शुरू किया. वो 2004 से ही वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम कर रहे हैं. संतोष अपने खेतों में तो इसका प्रयोग कर ही रहे हैं साथ ही किसानों को भी सस्ते दर पर जैविक खाद उपलब्ध करा रहे हैं. इससे संतोष की कमाई भी अच्छी हो रही है.
संतोष झा ने बताया कि वो 2004 से ही वर्मी कंपोस्ट तैयार कर रहे हैं. इस काम को शुरू करने में सबसे बड़ा योगदान प्रो. डॉ. एके राय का रहा. उन्होंने बताया कि बांका में मिट्टी को लेकर सर्वे का काम चल रहा था. वहीं ललमटिया में बॉटनी कोल्ड फील्ड में भी मृदा सुधार एवं रोपण रिसर्च भी चल रहा था. जहां सीन प्रजाति के केंचुआ से वर्मी कंपोस्ट तैयार करने पर सो चल रहा था जो सफल रहा. सर्वे होने के बाद वर्मी कंपोस्ट के लिए परियोजना का प्रस्ताव दिया गया था. भारत सरकार के डिपार्मेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी द्वारा परियोजना पर काम करने के लिए फंड निर्गत कराया गया. इसके बाद बांका के शहरी एवं ग्रामीण इलाकों में 180 वर्मी कंपोस्ट यूनिट बनाने का काम शुरू हुआ. तब से वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम कर रहे हैं.
असीनिया फटिडा नामक केंचुए की पड़ती है जरूरत
संतोष कुमार झा ने बताया कि केंचुए से बनने वाला खाद गोबर वाले खाद की अपेक्षा पोषक तत्वों से भरपूर रहता है. वर्तमान समय में लगातार इसकी मांग बढ़ रही है. केंचुआ से खाद बनाने के लिए छायादार जगह की जरूरत होती है, जहां पर कम जगह में वर्मी कंपोस्ट तैयार किया जा सकता है. खाद बनाने के लिए असीनिया फटिडा नामक केंचुए की जरूरत होती है, जो आसानी से गोबर को वर्मी कंपोस्ट में बदल देता है. वर्मी कंपोस्ट को गड्ढे, कंटेनर, खाली डिब्बे या कचरा पात्र, टैंक, खुली जगह में प्लास्टिक बिछाकर भी तैयार किया जा सकता है. केंचुआ से खाद बनाने के लिए ज्यादा खर्च की जरूरत नहीं पड़ती है. अगर किसान के पास 5 से 6 पशु है तो आसानी से 10 बीघा के लिए खाद तैयार कर सकते हैं.
इस प्रक्रिया को अपनाकर बना सकते हैं वर्मी कंपोस्ट
संतोष झा ने बताया कि खाद बनाने के लिए 10 से 15 दिन पुराने गोबर पर 2 से 3 दिन तक पानी का छिड़काव कर ठंडा किया जाता है. इसके बाद बेड बनाकर उसमें केंचुए को छोड़ दिया जाता है और उसको ढक दिया जाता है. केंचुआ नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या किसी भी प्रशिक्षण केंद्र से प्राप्त कर सकते हैं. वर्मी बेड में नमी बनाए रखने के लिए इस पर पानी का छिड़काव किया जाता है. केंचुआ 50 से 60 दिन में गोबर को खाद में बदल देता है. इसके बाद किसान छानकर अपने खेतों में उपयोग ले सकते है. उन्होंने बताया किऑर्गेनिक उत्पाद की मांग बढ़ती जा रही है. इसी को देखते हुए वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम शुरू किया था अब सालाना 4 से 5 लाख की कमाई हो जा रही है.
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FIRST PUBLISHED : March 14, 2024, 16:37 IST