आप दिवाली पर नहीं जलाते आकाशदीप? फायदे जान इस बार खुद को रोक नहीं पाएंगे

दुर्गेश सिंह राजपूत/नर्मदापुरम. आज की आधुनिक दिवाली में आकाशदीप मानों गुम हो गए हैं. अब इनकी जगह चाइनीज पैराशूट या सजावटी सामानों ने ले ली है. शायद ही बहुत कम लोग जानते होंगे दिवाली पर आकाशदीप जलाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है और इसके कई फायदे भी हैं. इसकी जानकारी नहीं होने के कारण आज बहुत से लोग उन लाभों से वंचित रह जाते हैं.

ज्योतिषाचार्य के अनुसार, हिंदू धर्म में आकाशदीप या आकाश कंदील की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसे दिवाली में की जाने वाली सजावट का अहम हिस्सा माना गया है. कोई पितरों की याद में इसे जलाता है तो कोई अपने घर की शोभा बढ़ाने के लिए. वहीं कुछ लोग धन की देवी मां लक्ष्मी एवं शुभ-लाभ के देवता श्री गणेश को अपने घर में आमंत्रित करने के लिए इसे विशेष रूप से जलाते हैं.

रामायण काल से जुड़ा इतिहास
आचार्य पं. अविनाश मिश्रा बताते हैं कि हम सभी जानते हैं कि आकाशदीप का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है. मान्यता है कि जब अयोध्या के राजा राम लंका पर विजय के बाद वापस अपने नगर लौटे थे, तब वहां के लोगों ने उनके स्वागत में दीये जलाए थे. प्रभु श्रीराम के वापस आने में मनाए गए दीपोत्सव को दूर तक दिखाने के लिए लोगों ने बांस से खूंटा बनाकर उसमें दीये से रोशनी की थी, तब से लेकर अब तक यह परंपरा चली आ रही है. वैसे अब इस आधुनिक काल में दिवाली पर कागजी गुब्बारे को दीए की गर्म लौ से हवा में उड़ाने की परंपरा भी उसी का प्रतीक है. अब छोटी एवं बड़ी दीपावली की रात रंग-बिरंगी कंदील को आसमान में लोग विशेष रूप से जलाकर उड़ाते हैं.

महाभारत से भी जुड़ा इसका प्रसंग
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि वाराणसी में लंबे समय से अपने पितरों की स्मृति में आकाशदीप जलाने की परंपरा चली आ रही है. यह भी माना गया है कि इस परंपरा की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. कहते हैं कि महाभारत के युद्ध के दौरान दिवंगत हुए लोगों की याद में भीष्म पितामह ने कार्तिक मास में यहां विशेष रूप से दीये जलवाए थे, जिसके बाद से यह परंपरा लगातार यहां पर चलती आ रही है.

आकाशदीप जलाने का लाभ
पं. अविनाश मिश्रा के अनुसार, कार्तिक मास में जो व्यक्ति शुभत्व की कामना करते हुए आकाशदीप का दान करता है, उसे सुख-संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. उसके ऊपर देवी-देवताओं के साथ ही पितरों की पूरी कृपा बरसती है. मान्यता के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या के दिन जो व्यक्ति आकाश में दीपदान करता है, उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं आसानी से वे परम लोक जाते हैं. वर्तमान में आकाशदीप या कंदील को लोग आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी तक अपनी छत या बालकनी के मुख्य द्वार पर लगातार जलाते हैं.

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