आपके एक बच्‍चे को है डायबिटीज तो दूसरे भाई-बहन को कितना खतरा? कैसे हो सकता….

हाइलाइट्स

अगर मां और पिता दोनों डायबिटिक हैं तो बच्‍चों में डायबिटीज होने के 50 फीसदी चांस होते हैं.
बच्‍चों को डायबिटीज न हो इसके लिए रोजाना व्‍यायाम, संतुलित खानपान और शुगर की जांच जरूरी है.

Type 2 diabetes in children: विश्‍व भर में डायबिटीज की बीमारी न केवल बड़ों को बल्कि बच्‍चों को भी तेजी से अपनी चपेट में ले रही है. चाहे टाइप-1 डायबिटीज हो या टाइप टू  डायबिटीज  दोनों ही बीमारियां खतरनाक हैं. जहां टाइप-वन एक ऑटो इम्‍यून बीमारी है वहीं टाइप टू जेनेटिकली माता या पिता से भी बच्‍चों में आ जाती है लेकिन क्‍या आपको मालूम है कि अगर किसी एक बच्‍चे को डायबिटीज  है तो उसके सिबलिंग यानि कि सगे भाई या बहन को डायबिटीज होने का कितना खतरा होता है?

ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज नई दिल्‍ली में पीडियाट्रिक एंडोक्राइनोलॉजी डिविजन की प्रोफेसर वंदना जैन बताती हैं कि छोटे बच्‍चों में डायबिटीज की समस्‍या पहले भी होती थी लेकिन पिछले कुछ सालों से अस्‍पताल में आने वाले डायबिटिक बच्‍चों की संख्‍या में पांच गुना तक बढ़ोत्‍तरी हुई है. हालांकि ये अलग बात है कि इनमें से 85 फीसदी बच्‍चे टाइप-वन डायबिटीज के आते हैं. जबकि 15 फीसदी में टाइप टू डायबिटीज के अलावा नियोनेटल डायबिटीज और कैंसर, हार्ट या किडनी रोगों की दवाओं के कारण पैदा हुई ड्रग इंड्यूज डायबिटीज शामिल है.

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संक्रामक नहीं है रोग
डॉ. वंदना कहती हैं कि डायबिटीज कोई संक्रामक रोग नहीं है बल्कि गैर संचारी रोग यानि नॉन कम्‍यूनिकेबल डिजीज है. यह एक दूसरे से नहीं फैलती लेकिन टाइप टू डायबिटीज मां-पिता से बच्‍चों को हो सकती है.

भाई-बहनों को भी हो सकती है डायबिटीज
जहां तक एक बच्‍चे को डायबिटीज है तो दूसरे या तीसरे बच्‍चे में रोग की संभावना की बात है तो सिबलिंग में भी डायबिटीज हो सकती है. एक अनुमान के मुताबिक सगे भाई-बहनों में डायबिटीज होने का खतरा 15 फीसदी ज्‍यादा होता है.

प्रो. जैन कहती हैं कि टाइप-1 डायबिटीज ऑटो इम्‍यून बीमारी है और इसकी कोई फैमिली हिस्‍ट्री नहीं होती लेकिन टाइप-2 डायबिटीज में परिवार का इतिहास देखने को मिलता है. सिबलिंग यानि सगे भाई-बहन में एक में भी डायबिटीज मेलिटस होने पर दूसरे भाई-बहनों को डायबिटीज होने का खतरा आम बच्‍चों के मुकाबले 15 फीसदी ज्‍यादा बढ़ जाता है.

क्‍या करें बचाव के लिए
डॉ. जैन कहती हैं कि अगर किसी के एक बच्‍चे को टाइप-1 या टाइप टू में से कोई भी डायबिटीज है तो उन्‍हें चाहिए कि वे साल में कम से कम एक बार अपने दूसरे या अन्‍य बच्‍चों का भी शुगर लेवल चेक कराएं. अगर आपके दूसरे बच्‍चे को बीपी, हाई कॉलेस्‍ट्रॉल की समस्‍या या फैटी लिवर है तो भी उसकी डायबिटीज जरूर चेक कराते रहें. अन्‍य बच्‍चों को व्‍यायाम कराने पर जोर दें. रोजाना वॉक जरूर कराएं. खानपान को संतुलित करें. बाहर का खाना, जंक या फास्‍ट फूड कम से कम खाने दें. इस तरह अन्‍य बच्‍चों में डायबिटीज की संभावना को कम किया जा सकता है.

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