रिपोर्ट-विशाल भटनागर
मेरठ. 1857 की क्रांति और मेरठ की इसमें भूमिका के बारे में हम सब जानते हैं. 1857 का विद्रोह यहीं से शुरू हुआ था. मेरठ छावनी के सैनिकों ने इसका बिगुल फूंका था. मेरठ का इतिहास अदम्य साहस और शौर्य गाथा से भरा हुआ है. शौर्य कहानियों के सिवाय देश की शान तिरंगे का इतिहास भी मेरठ ने लिखा. इसलिए आज भी देश भर में मेरठ के तिरंगे की मांग रहती है.
आजाद भारत में दिल्ली के लाल किले पर जो पहला तिरंगा फहराया गया वो मेरठ में ही बनाया गया था. यहां के क्षेत्रीय श्रीगांधी आश्रम में रातों रात ये ध्वज तैयार किया गया था. उसके बाद उस ध्वज को 15 अगस्त 1947 को दिल्ली के लाल किले पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने फहराया था.
जब दो दिन और रात मिलकर तैयार हुआ तिरंगा
इतिहासकार प्रो. डॉ नवीन गुप्ता बताते हैं स्वतंत्रता संग्राम के बाद जब देश की आजादी की घोषणा हुई. तब पहली बार दिल्ली के लाल किले पर राष्ट्रध्वज फहराना था. ध्वज समिति की चिंता इसी बात पर थी कि सबसे पहले कहां राष्ट्र ध्वज तैयार हो सकता है. तब क्रांतिकारियों की टोली ने मेरठ के क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम में राष्ट्रीय ध्वज तैयार कराने पर सहमति जताई थी. उसके बाद समिति का पैनल मेरठ पहुंचा. समिति के निर्देशन में नत्थे सिंह और उनकी टीम ने दिन रात काम करते हुए 2 दिन में राष्ट्र ध्वज तैयार कर सौंप दिया था.
मेरठ यानि सही तिरंगा
बस वो दिन और आज का दिन. मेरठ ने तिरंगा ध्वज निर्माण में देशभर का विश्वास जीत लिया. यहां के क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम में आज भी राष्ट्रध्वज तैयार होते मिलेंगे. इनकी विशेष मांग रहती है. लोग जानते हैं कि यहां निर्धारित मानकों पर तैयार तिरंगा मिलेगा. साथ ही श्रीगांधी आश्रम के प्रति लोगों की निष्ठा भी. क्षेत्रीय मंत्री पृथ्वी सिंह रावत कहते हैं मेरठ ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों में भी इस आश्रम में तैयार हुए तिरंगे भेजे जाते हैं जो राष्ट्र की शोभा बढ़ाते हैं. संजीव कुमार शर्मा ने बताया शासन की ओर से निर्धारित किए गए मानक और फ्लैग कोड के अनुसार ही मेरठ के क्षेत्रीय श्री गांधी आश्रम में राष्ट्रध्वज को तैयार किया जाता है. जो खादी से निर्मित होते हैं.
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FIRST PUBLISHED : January 27, 2024, 12:13 IST