आजाद भारत में भी हुआ ‘जलियांवाला बाग कांड’, लाशें भरकर पाट दिया कुआं

नए साल पर हर तरफ खुशनुमा माहौल है. सभी एकदूसरे को बधाई और बेहतर भविष्‍य की शुभकामनाएं दे रहे हैं. लेकिन, आजादी के बाद आया पहला नया साल एक समुदाय के लिए खुशियों के बजाय मौत का तांडव लेकर आया था. देश को आजाद हुए पांच महीने बीत चुके थे. देश 1 जनवरी 1948 को आजादी के बाद पहली बार नए साल का बांहें खोलकर स्‍वागत कर रहा था. इसी दिन खरसावां आजाद भारत के ‘जलियांवाला बाग कांड’ का गवाह बना. खरसावां में आजाद भारत की पुलिस ने देश के आजाद नागरिकों पर बर्बरतापूर्ण कार्रवाई की.

1 जनवरी 1948 को खरसावां में साप्ताहिक हाट लगी हुई थी. इसी दौरान तत्‍कालीन उड़ीसा सरकार ने हाट के पूरे इलाके को छावनी में तब्‍दील करवा दिया. खरसावां हाट में उस दौरान करीब 50 हजार आदिवासी मौजूद थे. तभी उड़ीसा पुलिस ने भीड़ पर अंधाधुंध गोली चलानी शुरू कर दी. ये आजाद भारत का पहला नया साल था. इस बर्बर कांड को स्‍वतंत्र भारत का जलियांवाला बाग कांड कहा जाता है. झारखंड में इस घटना की बरसी आज भी मनाई जाती है. इस गोलीकांड में मारे गए लोगों की संख्‍या को अलग-अलग दावे किए जाते हैं.

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गोलीकांड में मरने वालों की संख्‍या पर मतभेद
लेखक व पत्रकार अनुज कुमार सिन्‍हा की किताब ‘झारखंड आंदोलन के दस्तावेज : शोषण, संघर्ष और शहादत’ में इस नरसंहार के बारे में विस्‍तार से बताया गया है. इसके मुताबिक, मारे गए लोगों की संख्या को लेकर पर्याप्‍त दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं. पूर्व सांसद महाराजा पीके देव की किताब ‘मेमोयर ऑफ ए बायगॉन एरा’ में लिखा गया है कि खरसावां गोलीकांड में 2,000 से ज्‍यादा लोग मारे गए थे. वहीं, कलकत्ता (अब कोलकाता) के अखबार द स्टेट्समैन ने 3 जनवरी 1948 के अंक में ’35 आदिवासी किल्ड इन खरसावां’ शीर्षक से खबर प्रकाशित की. रिपोर्ट के मुताबिक, खरसावां का उड़ीसा में विलय का विरोध कर रहे 30 हजार आदिवासियों पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं. गोलीकांड की जांच के लिए न्‍यायाधिकरण का गठन भी किया गया था.

उड़ीसा में क्‍यों मिलाना चाहते थे खरसावां को
खरसावां राज्‍य उड़िया भाषी क्षेत्र था. इसीलिए उड़ीसा खरसावां को अपने साथ मिलाने की कोशिश में जुटा था. यही नहीं, खरसावां के राजा भी अपने राज्‍य को उड़ीसा में मिलाने को तैयार थे. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड आंदोलनकारी और पूर्व विधायक बहादुर उरांव ने बताया कि खरसावां का आदिवासी समुदाय बिहार या उड़ीसा में से किसी भी राज्‍य में शामिल नहीं होना चाहता था. खरसावां के आदिवासी तभी से अलग झारखंड राज्‍य की मांग कर रहे थे. वह बताते हैं कि कोल्‍हान इलाके के लोग 1 जनवरी 1948 को साप्‍ताहिक हाट करने और आदिवासियों के नेताओं में एक व ओलंपिक हॉकी टीम के पूर्व कप्तान जयपाल सिंह मुंडा को सुनने के लिए बाजार पहुंचे थे.

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मशीनगन से खींची लकीर, कुएं में भरीं लाशें
जयपाल सिंह अलग झारखंड राज्य के समर्थन में नारे लगा रहे थे. भारी भीड़ को देखकर पुलिस ने मशीनगन से एक लकीर खींचकर लोगों से उसे पार नहीं करने की चेतावनी दी. दरअसल, तब घटनास्‍थल के पास डाक बंगला और ब्‍लॉक ऑफिस था. पुलिस ने लकीर खींचकर चेतावनी दी कि इसे पार कर राजा से मिलने की कोई कोशिश ना करे. इसी बीच अचानक पुलिस ने गोली चलानी शुरू कर दी. अफरातफरी में लोग साप्‍ताहिक हाट में राजा रामचंद्र सिंहदेव के बनवाए कुएं में कूदने लगे. इस कुएं को पुलिस ने लाशों के साथ ही अधमरे लोगों से भर दिया. इसके बाद कुएं को ढक दिया गया. वर्तमान में इस कुएं पर ही शहीद स्‍थल बना हुआ है.

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स्‍वतंत्र भारत का पहला मार्शल लॉ हुआ लागू
घटना के बाद पूरे क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था. माना जाता है कि स्‍वतंत्र भारत का ये पहला मार्शल लॉ था. इस गोलीकांड की सबसे बड़ी वजह खरसावां के उड़ीसा में विलय का विरोध थी. केंद्र के दवाब में सरायकेला के साथ खरसावां रियासत के उड़ीसा में विलय का समझौता हुआ था. ये समझौता 1 जनवरी 1948 को ही लागू होना था. तब मरांग गोमके के नाम से पहचाने जाने वाले आदिवासियों के नेताओं में एक और ओलंपिक हॉकी टीम के पूर्व कप्तान जयपाल सिंह मुंडा ने इसका विरोध किया. इसी के बाद साप्‍ताहिक हाट में हजारों आदिवासियों की भीड़ अपने पारंपरिक हथियारों के साथ जुट गई थी.

नया नहीं था अलग झारखंड का आंदोलन
रांची यूनिवर्सिटी के जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग के पूर्व अध्यक्ष गिरिधारी राम गौंझू के मुताबिक, आदिवासियों की अपने राज्य और स्वशासन की मांग काफी पुरानी थी. साल 1911 से इसके लिए सीधी लड़ाई शुरू कर दी गई थी. इसके पहले बिरसा मुंडा के समय ‘दिसुम आबुआ राज’ यानी ‘हमारा देश, हमारा राज’ का आंदोलन चलाया गया था. इसके भी पहले 1855 में सिद्धू-कानू भी ‘हमारी माटी, हमारा शासन’ का नारा लगा रहे थे. इसी मांग को आगे बढ़ाने के लिए आदिवासी साप्‍ताहिक हाट में जुटे थे. घटना के बाद पूरे देश में प्रतिक्रिया हुई. उन दिनों देश की राजनीति में बड़ी हैसियत रखने वाले बिहार के नेता भी यह विलय नहीं चाहते थे. लिहाजा, तब इलाके का उड़ीसा में विलय रोक दिया गया.

Tags: History of India, Jallianwala bagh, Jharkhand news, New Year Celebration

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