13 अप्रैल 1919 को जलियावाला गोलीकांड तो हर भारतीय को याद होगा। जिसमें 1 हजार से ज्यादा भारतीय जनरल डायर की क्रूरता का शिकार हो गए थे। लेकिन आपको ये पता है कि आजाद भारत में भी जलियावाला बाग गोलीकांड जैसा एक वाक्या हो चुका है जिसमें लोगों की माने तो 2 हजार इंसानों ने अपनी जान गंवाई थी। जबकि आधिकारिक आंकड़ा साफ नहीं है। नए साल के पहले दिन आज खारसांवा हत्याकांड एक बार फिर से ट्रेंड करने लगा। वर्तमान दौर में बहुत से लोग ये जानते भी नहीं होंगे कि ये कौन सी घटना है, जो आज भी लोगों को उद्वेलित करती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या है ये 75 साल पुराना खारसांवा हत्याकांड।
15 अगस्त 1947 का दिन जब ब्रिटिश हुकूमत की इस देश से विदाई हो गई। इसी के साथ ही भारत ने आजादी के एक नए युग में प्रवेश किया। लेकिन इस जश्न के साथ एक टीस भी हाथ लगी जब सांप्रदायिक आधार पर देश का विभाजन दो हिस्सों में हो गया। इसके साथ ही भारत देश के भीतर भी देसी रियासतों की एक नई चुनौती मुंह बाए खड़ी थी। 565 रियासतों में बंटे देश का एकीकरण एक बड़ी चुनौती थी। इन्हीं रियासतों में से दो रियासतें सरायकेला और खड़सामा थी। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने रियासतों का विलय करके देश के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू की। रियासतों को 3 श्रेणियों में विभाजित किया गया था: ए- बड़ी रियासतें, बी- मध्यम और सी- छोटी रियासतें। उस समय खरसावां और सरायकेला छोटी-छोटी रियासतें थीं। सरायकेला और खड़सामा रियासतें बिहार के छोटा नागपुर डिवीजन के सिंहभूम जिले से घिरी हुई थी। अनौपचारिक रूप से 14-15 दिसंबर को खरसावां और सरायकेला रियासतों को ओडिशा में विलय करने का समझौता हुआ। यह समझौता 1 जनवरी 1948 से लागू होना था।
जनसभा में आए लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग
1 जनवरी, 1948 को आदिवासी नेता जयपाल सिंह ने खरसावां और सरायकेला के ओडिशा में विलय के विरोध में खरसावां हाट मैदान में एक विशाल सार्वजनिक बैठक बुलाई। जनसभा में कोल्हान के विभिन्न क्षेत्रों से हजारों लोग शामिल हुए थे। इसे देखते हुए पर्याप्त संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया था। किसी कारणवश जयपाल सिंह जनसभा में नहीं पहुंच सके। किसी बात को लेकर पुलिस और जनसभा में आए लोगों के बीच झड़प हो गई। अचानक पुलिस जवानों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी। इसमें सैकड़ों लोगों को गोली मार दी गयी। हाट मैदान आदिवासियों के खून से लाल हो गया।
शवों को कुएं में फेंक कर मिट्टी से भर दिया गया
गोलीबारी में मृतकों की संख्या अब तक पता नहीं चल पाई है। बताया जाता है कि खरसावां हाट मैदान स्थित एक कुएं में शवों को भरकर ऊपर से मिट्टी डाल दी गयी थी। आज यह स्थान शहीद बेदी एवं हाट मैदान शहीद पार्क में परिवर्तित हो गया है। बताया जाता है कि गोलीकांड के बाद पूरे देश में प्रतिक्रिया हुई। तत्कालीन समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने खरसावां गोलीकांड की तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से की थी।
बिहार के राजनेता ओडिशा में विलय नहीं चाहते थे
उन दिनों बिहार के नेताओं का देश की राजनीति में अहम स्थान था। वह नहीं चाहते थे कि सरायकेला और खरसावां का विलय ओडिशा में हो। इस घटना का प्रभाव यह हुआ कि दोनों रियासतों का विलय उड़ीसा की बजाय बिहार राज्य में कर दिया गया।
शहीदों की संख्या बताने वाला कोई सरकारी दस्तावेज़ नहीं
वरिष्ठ पत्रकार और ‘बॉलीवुडवाला’ झारखंड के कार्यकारी संपादक अनुज कुमार सिन्हा की किताब ‘झारखंड आंदोलन के दस्तावेज: शोषण, संघर्ष और शहादत’ में खरसावां गोलीकांड पर एक अलग अध्याय है। वह लिखते हैं, मारे गए लोगों की संख्या के बारे में बहुत कम दस्तावेज़ उपलब्ध हैं। पूर्व सांसद सह महाराजा पीके देव की किताब ‘मेमॉयर ऑफ ए बायगोन एरा’ के मुताबिक इस घटना में दो हजार लोग मारे गये थे। हालाँकि, कलकत्ता (अब कोलकाता) से प्रकाशित अंग्रेजी अखबार द स्टेट्समैन ने घटना के तीसरे दिन 3 जनवरी के अंक में इस घटना से संबंधित एक खबर प्रकाशित की, जिसका शीर्षक था – ‘खरसावां में 35 आदिवासियों की हत्या’. अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि खरसावां के ओडिशा में विलय का विरोध कर रहे 30 हजार आदिवासियों पर पुलिस ने गोलियां चलायीं। इस गोलीकांड की जांच के लिए एक ट्रिब्यूनल बनाया गया, लेकिन उसकी रिपोर्ट का क्या हुआ, यह कोई नहीं जानता।
दो शहीदों के आश्रितों को सरकारी स्तर पर सम्मान मिला
वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खरसावां गोलीकांड के दो शहीदों महादेव बूटा (खरसावां), बूटा के सिंगराई बोदरा (खरसावां) और बैडीह (कुचाई) के डोलो मानकी सोय के आश्रितों को राशि देकर सम्मानित किया था। प्रत्येक को एक लाख रु. इनके अलावा किसी अन्य शहीद की पहचान सरकारी स्तर पर नहीं की गयी है।
खरसावां शहीद पार्क 2.20 करोड़ रुपये से बना
वर्ष 2016 में करीब 2.20 करोड़ रुपये की लागत से शहीद पार्क का निर्माण कराया गया था। शहीद पार्क का रंगरोगन कर उसका जीर्णोद्धार कराया गया। शहीद पार्क परिसर में शहीद बेदी है, जहां लोग श्रद्धांजलि देते हैं। इस स्थान पर लोग 1 जनवरी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। विजय सिंह बोदरा वर्तमान में शहीद स्थल के पुजारी हैं। उनका परिवार पीढ़ियों से यहां पूजा करता आ रहा है। विजय ने बताया कि एक जनवरी को शहीदों के नाम पर पूजा की जाती है। शहीद स्थल पर फूल-मालाओं के साथ-साथ तेल भी चढ़ाया जाता है।