कुंदन कुमार/गया. बिहार के गया जिला में रसभरी, जिसे मकोय भी कहा जाता है, की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है. जिले के मानपुर प्रखंड क्षेत्र के सुरहरी, भूसंडा, भदेजा और बहोरा बिघा गांव में लगभग 10 बीघा में इसकी खेती होती है. यहां का मकोय बिहार के विभिन्न जिलों के अलावा कोलकाता भी भेजा जाती है. बता दें कि यहां 20-25 सालों से इसकी की खेती की जा रही है. इससे किसानों को अच्छी आय भी हो रही है. इस खेती में धान, गेंहू और परंपरागत फसल से अधिक मुनाफा होता है.यही वजह है कि यहां के किसान इसकी खेती करते हैं.
गया के बाजारों में इसकी कीमत 50 रुपए किलो तक है. इसके रेट में उतार चढाव होते रहता है. इसकी खेती के लिए किसान जुलाई अगस्त के महीने में पौधा लगाते हैं. अक्टूबर-नवंबर महीने से इसमें फल आना शुरु हो जाता है.अप्रैल महीने तक फलन होता है. हर सप्ताह प्रति कट्ठा 20-25 किलो मकोय तोड़ा जाता है. सुरहरी गांव के ही रहने वाले विनोद रविदास ने भी 15 कट्ठा में मकोय की खेती किए हुए हैं.इससे अच्छी बचत कर रहें हैं.
टमाटर की तरह होती है खेती
विनोद रविदास बताते हैं कि यहां का मकोय दूसरे राज्य भी जाता है. यहां के मकोय की खासियत है कि यह बिल्कुल मीठा होता है. हम लोग इसका पौधा लगाते हैं और बीज उत्पादन कर अगले वर्ष उसका पौधा तैयार कर खेत में लगाते हैं. इसकी खेती बिल्कुल टमाटर की खेती जैसी ही होती है.लगभग 9-10 महीने की खेती है. 15 कट्ठा से हर पांचवें दिन 250 किलो मकोय तोड़ते हैं. यहां आसपास के लगभग 20-25 किसान इसकी खेती सालों से कर रहें है.इसकी खेती में अच्छी बचत हो जाती है.
आंख,दिल और बीपी में होता है फायदा
मकोय के बारे में कहा जाता है कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से इसके खाने से कई तरह के फायदे होते हैं. इस संबंध में गया के सिविल सर्जन डॉक्टर रंजन कुमार सिंह बताते हैं कि मकोय में विटामिन ए, विटामिन सी, कैल्शियम और आयरन पाया जाता है. इसे खाने से आंख की रोशनी में वृद्धि होती है. मोतियाबिन्द भी कम होता है. इसके सेवन से हर्ट मजबूत रहता है और ब्लड प्रेशर भी कम होता है. इसका सेवन हर वर्ग के लोग कर सकते हैं.इसके सेवन से बैड कोलेस्ट्रॉल कम होता है. शुगर भी कम करता है और डायबिटिक पेशेंट इसका सेवन कर सकते हैं.
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FIRST PUBLISHED : February 29, 2024, 14:32 IST